Book Title: Vrushabhdev tatha Shiv Samabandhi Prachya Manyataye
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 15
________________ डॉ. राजकुमार जैन : वृषभदेव तथा शिव-संबंधी प्राच्य मान्यताएं : ६२३ आकृति के सर्वथा विपरीत एवं भयावह है. वह हाथ में कपाल लिये हैं' और लोकवजित श्मशान प्रदेश उनका प्रिय आवास है, जहां वह राक्षसों, वेतालों, पिशाचों और इसी प्रकार के अन्य जीवों के साथ विहार करते हैं. उनके गण को 'नक्तंचर' तथा 'पिशिताशन' कहा गया है. एक स्थल पर स्वयं शिव को मांस भक्षण करते हुए तथा रक्त एवं मज्जा का पान करते हुए उल्लिखित किया गया है." अश्वघोष के बुद्धचरित में शिव का 'वृषध्वज' तथा 'भव' के रूप में उल्लेख हुआ है,५ भारतीय नाट्यशास्त्र में शिव को 'परमेश्वर' कहा गया है.६ उनकी 'त्रिनेत्र' 'वृषांक' तथा 'नटराज' उपाधियों की चर्चा है. वह नृत्यकला के महान् आचार्य हैं और उन्होंने ही नाट्यकला को 'ताण्डव' दिया. वह इस समय तक महान् योगाचार्य के रूप में ख्यात हो चुके थे तथा इसमें कहा गया है कि उन्होंने ही 'भरत-पुत्रों' को सिद्धि सिखाई.८ अन्त में शिव के त्रिपुरध्वंस का भी उल्लेख किया गया है और बताया गया है कि ब्रह्मा के आदेश से भरत ने 'त्रिपुरदाह' नामक एक 'डिम' (रूपक का एक प्रकार) भी रचा था और भगवान् शिव के समक्ष उसका अभिनय हुआ था.६ पुराणों में शिव का पद बड़ा ही महत्त्वपूर्ण हो गया है. यहाँ वह दार्शनिकों के ब्रह्म हैं, आत्मा हैं, असीम हैं और शाश्वत हैं.१° वह एक आदि पुरुष हैं. परम सत्य हैं तथा उपनिषदों एवं वेदान्त में उनकी ही महिमा का गान किया गया है." बुद्धिमान् और मोक्षाभिलाषी इन्हीं का ध्यान करते हैं.१२ वह सर्वज्ञ हैं, विश्वव्यापी हैं, चराचर के स्वामी हैं तथा समस्त प्राणियों में आत्मरूप से बसते हैं.13 वह एक स्वयंभू हैं तथा विश्व का सूजन, पालन एवं संहार करने के कारण तीन रूप धारण करते हैं. उन्हें 'महायोगी',१५ तथा योगविद्या का प्रमुख आचार्य माना जाता है. सौर तथा वायु पुराण में शिव की एक विशेष योगिक उपासना विधि का नाम माहेश्वर योग है. इन्हें इस रूप में 'यती', 'आत्म-संयमी' 'ब्रह्मचारी'२० तथा 'ऊर्ध्वरेताः'२१ भी कहा गया है. शिवपुराण में शिव का आदि तीर्थंकर वृषभदेव के रूप में अवतार १. वनपर्व बहीः १८८, ५० आदि. २. वही वनपर्वः ८३, ३. ३. द्रोण पर्वः ५०, ४६. ४. वही, अनुशासन पर्व, १५१, ७. ५. बुद्धचरितः १०, ३, १,६३. ६. नात्यशास्त्रः १,१. ७. वहीः १, ४५, २४, ५, १०. ८. वहीः १,६०, ६५. ६. वहीः ४,५,१०. १०. लिंग पुराण, भाग २, २१, ४६, वायुपुराणः ५५, ३, गरुडपुराणः १६, ६,७. ११. सौरपुराणः २६, ३१, ब्रह्मपुराणः १२३, ११६. १२. वहीः २,८३, ब्रह्मपुराणः ११०, १००. १३. वायु पुराणः ३०, २८३,८४. १४. वहीः ६६, १०८, लिंग पुराण भाग १, ११. १५. वही: २४, १५६ इत्यादि. १६. ब्रह्मवैवर्तपुराणः भाग १, ३, २०, ६, ४. १७. सौर पुराणः अध्याय १२. १८. वायु पुराण अध्याय १०. १६. मत्स्यपुराणः ४७, १३८, वायुपुराणः १७, १६६. २०. वही, ४७,१३८, २६, वायुपुराणः २४, १६२. २१. मत्स्यपुराणः १३६, ५, सौरपुराणः ७,१७, ३८,१,३८, १४. Jain EduKITramadi tiaT A THHTRA || HITADKAnirahARATIONanitilv.. ... .1111111111111111111111..numausbanry.org

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