Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 2 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 8
________________ पाठ४ ताको न जान विपरीत मान, करि करें देह में निज पिछान । मैं सुखी-दुखी मैं रंक-राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव। मेरे सुत तिय में सबल-दीन बेरूप-सुभग मूरख-प्रवीन । तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान । रागादि प्रकट जे दुःख दैन, तिनहीं को सेवत गिनत चैन । शुभ-अशुभ बंधके फल मंझार, रति-अरतिकर निजपद विसार। आतम-हित हेतु विराग-ज्ञान, ते लखें आपको कष्टदान । रोके न चाह निज शक्ति खोय, शिवरूप निराकुलतान जोय। (छहढाला, दूसरी ढाल, छन्द २ से ७ तक) चार अनुयोग प्रश्न १. जीव और अजीव तत्त्व के संबंध में इस जीव ने किसप्रकार की भूल की है ? २. “हम शुभ-भाव करेंगे तो सुखी होंगे", ऐसा मानने में किस तत्त्व संबंधी भूल हुई ? ३. "तत्त्वज्ञान प्राप्त करना कष्टकर है", क्या यह बात सही है ? यदि नहीं, तो क्यों ? ४. "जैसा सुख हमें है वैसा ही उससे कई गुणा मुक्त जीवों का है", ऐसा मानने में क्या बाधा है ? ५. “यदि परस्पर प्रेम (राग) करोगे तो आनन्द में रहोगे", क्या यह मान्यता ठीक है ? आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी (व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी के पिता श्री जोगीदासजी खण्डेलवाल दि. जैन गोदीका गोत्रज थे और माँ थीं रंभाबाई। वे विवाहित थे। उनके दो पुत्र थे - हरिश्चन्द्र और गुमानीराम । गुमानीराम महान् प्रतिभाशाली और उनके समान ही क्रान्तिकारी थे। यद्यपि पंडितजी का अधिकांश जीवन जयपुर में ही बीता, किन्तु उन्हें अपनी आजीविका के लिए कुछ समय सिंघाणा अवश्य रहना पड़ा था। वे वहाँ दिल्ली के एक साहूकार के यहाँ कार्य करते थे। ___ “परम्परागत मान्यतानुसार उनकी आयु २७ वर्ष की मानी जाती है, किन्तु उनकी साहित्य-साधना, ज्ञान व नवीनतम प्राप्त उल्लेखों तथा प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित हो चुका है कि वे ४७ वर्ष तक अवश्य जीवित रहे। उनकी मृत्यु-तिथि वि.सं. १८२३-२४ लगभग निश्चित है, अत: उनका जन्म वि.सं. १७७६-७७ में होना चाहिए।" उन्होंने अपने जीवन में छोटी-बड़ी बारह रचनाएँ लिखीं, जिनका परिमाण करीब एक लाख श्लोक प्रमाण है, पाँच हजार पृष्ठों के करीब । इनमें कुछ तो लोकप्रिय ग्रंथों की विशाल प्रामाणिक टीकाएँ हैं और कुछ हैं स्वतंत्र रचनाएँ। वे गद्य और पद्य दोनों रूपों में पाई जाती हैं - १. मोक्षमार्गप्रकाशक (मौलिक) २.रहस्यपूर्ण चिट्ठी (मौलिक) ३. गोम्मटसार पूजा (मौलिक) ४. समोशरणरचना वर्णन (मौलिक) १. पं. टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व : डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, पृष्ठ-५३ (१५) (१४)Page Navigation
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