Book Title: Vishwa Shantiwadi Sammelan aur Jain Parampara
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ५१६ जैन धर्म और दर्शन भरसक प्रयत्न किया। महावीर उस समय चुप रहते तो कोई उन्हें मृषावादः विरिति के महाव्रत से च्युत न गिनता । पर उन्होंने स्वयं सत्य देखा और सोचा कि असत्य न बोलना इतना ही उस व्रत के लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि असत्यवाद का साक्षी होना यह भी भयमूलक असत्यवाद के बराबर ही है। इसी विचार से गोशालक की अत्युग्र रोषप्रकृति को जानते हुए भी भावी संकट की परवाह न कर उसके सामने वीरता से सत्य प्रकट किया और दुर्वासा जैसे गोशालक के रोषाग्नि के दुःसह ताप के कटुक अनुभव से भी कभी सत्यसंभाषण का अनुताप न किया । अब हम सुविदित ऐतिहासिक घटनाओं पर आते हैं । नेमिनाथ की ही प्राणिरक्षण की परम्परा को सजीव करनेवाले अशोक ने अपने धर्मशासनों में जो आदेश दिए हैं, ये किसी से भी छिपे नहीं है । ऐसा एक धर्मशासन तो खद नेमिनाथ की ही साधना-भूमि में आज भी नेमिनाथ की परंपरा को याद दिलाता है। अशोक के पौत्र सम्प्रति ने प्राणियों की हिंसा रोकने व उन्हें अभयदान दिलाने का राजोचित प्रवृत्ति मार्ग का पालन किया है। बौद्ध कवि व सन्त मातृचेट का कणिकालेख इतिहास में प्रसिद्ध है । कनिष्क के आमंत्रण पर अति बुढ़ापे के कारण जब मातृचेट भितु उनके दरबार में न जा सके तो उन्होंने एक पद्यबद्ध लेख के द्वारा आमंत्रणदाता कनिष्क जैसे शक नृपति से पशु-पक्षी आदि प्राणियों को अभयदान दिलाने की भिक्षा मांगी। हर्षवर्धन, जो एक पराक्रमी धर्मवीर सम्राट था, उसने प्रवृत्ति मार्ग को कैसे विकसित किया यह सर्वविदित है । वह हर पाँचवें साल अपने सारे खजाने को भलाई में खर्च करता था। इससे बढ़कर अपरिग्रह की प्रवृत्ति बाजू का राजोचित उदाहरण शायद ही इतिहास में हो । गुर्जर सम्राट शैव सिद्धराज को कौन नहीं जानता ? उसने मलधारी प्राचार्य अभयदेव तथा हेमचन्द्रसूरि के उपदेशानुसार पशु, पक्षी आदि प्राणियों को अभयदान देकर अहिंसा की प्रवृत्ति बाजू का विकास किया है। उसका उत्तराधिकारी कुमारपाल तो परमात ही था। उसने कलिकाल सर्व प्राचार्य हेमचन्द्र के उपदेशों को जीवन में इतना अधिक अपनाया कि विरोधी लोग उसकी प्राणिरक्षा की भावना का परिहास तक करते रहे। जो कर्तव्य पालन की दृष्टि से युद्धों में भाग भी लेता था वही कुमारपाल अमारि-घोषणा के लिए प्रख्यात है। ___अकबर, जहाँ गिर जैसे मांसभोजी व शिकारशोखी मुसलिम बादशाहों से हीरविजय, शान्तिचन्द्र, भानुचन्द्र आदि साधुओं ने जो काम कराया वह हिसा धर्म की प्रवृत्ति बाजू का प्रकाशमान उदाहरण है । ये साधु तथा उनके अनुगामी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14