Book Title: Vishwa Shantiwadi Sammelan aur Jain Parampara
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 11
________________ ५१८ जैन धर्म और दर्शन अहिंसा व दया के विकास का पुराना इतिहास देखकर तथा निर्मोस भोजन को व्यापक प्रथा और जीव दया की व्यापक प्रवृत्ति देखकर ही लोकमान्य तिलक ने एक बार कहा था कि गुजरात में जो अहिंसा है, वह जैन परम्परा का प्रभाव है । यह ध्यान में रहे कि यदि जैन परम्परा केवल निवृत्ति बाजू का पोषण करने में कृतार्थता मानती तो इतिहास का ऐसा भव्य रूप न होता जिससे तिलक जैसों का ध्यान खिंचता । __हम "जीव दया मण्डली" की प्रवृति को भल नहीं सकते । वह करीब ४० वर्षों से अपने सतत प्रयत्न के द्वारा इतने अधिक जीव दया के कार्य कराने में सफल हुई है कि जिनका इतिहास जानकर सन्तोष होता है । अनेक प्रान्तों में व राज्यों में धार्मिक मानी जाने वाली प्राणिहिंसा को तथा सामाजिक व वैयक्तिक मांस भोजन की प्रथा को उसने चन्द कराया है व लाखों प्राणियों को जीवित दान दिलाने के साथ-साथ लाखों स्त्री पुरुषों में एक प्रात्मौपम्य के सुसंस्कार का समर्थ बीजवपन किया है। वर्तमान में सन्तबालका नाम उपेक्ष्य नहीं है। वह एक स्थानकवासी जैन मुनि है । वह अपने गुरू या अन्य धर्म-सहचारी मुनियों की तरह अहिंसा की केवल निष्क्रिय बाजू का आश्रय लेकर जीवन व्यतीत कर सकता था, पर गांधीजी के व्यक्तित्व ने उसकी आत्मा में अहिंसा की भावात्मक प्रेमज्योति को सक्रिय बनाया । अतएव वह रूढ़ लोकापवाद की बिना परवाह किए अपनी प्रेमवृत्ति को कतार्थ करने के लिए पंच महाव्रत की विधायक बाजू के अनुसार नानाविध मानवहित की प्रवृतियों में निष्काम भाव से कूद पड़ा जिसका काम आज जैन जेनेतर सब लोगों का ध्यान खींच रहा है । जैन ज्ञान-भाण्डार, मन्दिर, स्थापत्य व कला अब हम जैन परम्परा की धार्मिक प्रवृत्ति बाजू का एक और भी हिस्सा देखें जो कि खास महत्त्व का है और जिसके कारण जैन परंपरा आज जीवित व तेजस्वी है। इस हिस्से में ज्ञानभण्डार, मन्दिर और कला का समावेश होता है। सैकड़ों वर्षों से जगह-जगह स्थापित बड़े बड़े ज्ञान-भाण्डारों में केवल जैन शास्त्र का या अध्यात्मशास्त्र का ही संग्रह रक्षण नहीं हुआ है बल्कि उसके द्वारा अनेक विध लौकिक शास्त्रों का असाम्प्रदायिक दृष्टि से संग्रह संरक्षण हुआ है। क्या वैद्यक, क्या ज्योतिष, क्या मन्त्र तन्त्र, क्या संगीत, क्या सामुद्रिक, क्या भाषाशास्त्र, काव्य, नाटक, पुराण, अलंकार व कथाग्रंथ और क्या सर्व दर्शन संबन्धी महत्व के शास्त्र--इन सबों का ज्ञानभाण्डारों में संग्रह संरक्षण ही नहीं हुआ है बल्कि इनके अध्ययन व अध्यापन के द्वारा कुछ विशिष्ट विद्वानों ने ऐसी प्रतिभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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