Book Title: Vishwa Shanti me Nari ka Yogadana
Author(s): Nemichandramuni Siddhantideva
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ कंचनपुर के राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने से करकण्डू को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया । राजा करकण्डू और महाराज दधिवाहन दोनों में एक ब्राह्मण को एक गाँव इनाम में देने पर विवाद खड़ा हो गया । महाराज दधिवाहन ने अहंकारवश कंचनपुर पर चढ़ाई कर दी । करकण्डू भी अपनी सेना लेकर युद्ध के मैदान में आ डटा । महासती पद्मावती को पता लगा कि एक मामूली-सी बात को लेकर पिता-पुत्र में युद्ध होने वाला है तो उनका करुणाशील एवं अहिंसापरायण हृदय कांप उठा । वह गुरुणीजी की आज्ञा लेकर तुरन्त ही करकण्डू के खेमे में पहुँची । उसे श्वेतवासना साध्वी को युद्धक्षेत्र में देखकर आश्चर्य हुआ । श्रद्धावश नतमस्तक होकर उसने आगमन का कारण पूछा तो साध्वी ने वात्सल्यपूर्ण वाणी में कहा - " वत्स ! मैं तुम्हारी माता पद्मावती हूँ ।" पद्मावती ने उसके जन्म तथा चाण्डाल के यहाँ पलने की घटना सुनाई तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ । फिर साध्वीजी ने कहा- वत्स ! महाराज दधिवाहन तुम्हारे पिता हैं । पिता और पुत्र के बीच अज्ञात रहस्य का पर्दा पड़ा है, इसलिए तुम दोनों एक-दूसरे के शत्रु बनकर युद्ध करने पर उतारू हो गये हो । पिता-पुत्र में युद्ध होना एक भयंकर बात होगी । यह सुनकर करकण्डू राजा का हृदय पिता के प्रति श्रद्धावनत हो गया। उसने श्रद्धावश कहा- मैं अभी जाता हूँ, पिताजी के चरणों में । पदमावती शीघ्र ही राजा दधिवाहन के खेमे में पहुँची और बात-बात में उसने कहा कि करकण्डू चाण्डालपुत्र नहीं, वह आपका ही पुत्र है, मैं ही उसकी मां हूँ । यह कह रानी ने सारा रहस्योद्घाटन किया । राजा दधिवाहन का हृदय पुत्र - वात्सल्य से छल छला उठा, वह पुत्र मिलन के लिए दौड़ पड़ा । उधर करकण्डू भी पिता से मिलने के लिए दौड़ा हुआ आ रहा था । पिता-पुत्र दोनों स्नेहपूर्वक मिले। पिता ने पुत्र को चरणों में पड़े देख, आशीर्वाद दिया। महासती पद्मावती की सत्प्रेरणा से दोनों देशों में होने चाले युद्ध का भयंकर संकट ही नहीं टला, अपितु उनके बीच स्नेह और शान्ति की रसधारा बह चली । इस शान्ति और स्नेह की सूत्रधार श्री महासती पद्मावती । आज भी विश्व में कई जगह युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं, ये कब बरस पड़ें, कुछ कहा नहीं जा सकता । 'संयुक्त राष्ट्र संघ' तथा इससे पूर्व स्थापित "लीग ऑफ नेशन्स" इसी उद्देश्य से स्थापित हुआ है, किन्तु इसका सूत्रधार पुरुष के बदले कोई वात्सल्यमयी महिला हो तो अवश्य ही परिवार, समाज एवं राष्ट्रों के बीच होने वाले मनमुटाव, परस्पर अतिस्वार्थ, आन्तरिक कलह मिट सकते हैं । सन्त विनोबा ने विश्व के कई राष्ट्रों के आपसी तनाव और रस्सा कस्सी को देखकर कहा था - पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में प्रायः नम्रता, वत्सलता, अहिंसा की शक्ति आदि गुण अधिक देखे जाते हैं । इसलिए किसी योग्य महिला के हाथों में राष्ट्रों के संचालन का नेतृत्व देना चाहिए। महिला के हाथ में शासन सूत्र आने पर युद्ध की विभीषिका अत्यत कम हो सकती है, क्योंकि महिलाओं का करुणाशील हृदय युद्ध नहीं चाहता । वह विश्व में शान्ति चाहता है । यही कारण है कि एक बार विजयलक्ष्मी पण्डित संयुक्त राष्ट्र संघ की अध्यक्षा चुनी गई थी । यह बात दूसरी है कि उन्हें राष्ट्र राष्ट्र के बीच शान्ति स्थापित करने का अधिक अवसर नहीं मिल सका । यदि वह अधिक वर्षों तक इस पद पर रहती तो हमारा अनुमान है कि विश्व में अधिकांश राष्ट्रों में शान्ति का वातावरण बना देतीं । इसी प्रकार परिवार, समाज और राष्ट्र में होने वाले आन्तरिक कलह और मनमुटाव को दूर करने में महिलाओं ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। २७२ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान www.jainer

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6