Book Title: Vishwa Shanti me Nari ka Yogadana Author(s): Nemichandramuni Siddhantideva Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf View full book textPage 2
________________ . . . . .. . . . . . ... .. ........ .......... ...... ... साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ iiiiiiiiiii ... उपर्यवत कारणों को दूर किया जाना चाहिए । परन्तु इनमें से अधिकांश कारण ऐसे हैं, जिन्हें दूर करने के लिए सामूहिक पुरुषार्थ एवं परिस्थिति-परिवर्तन अपेक्षित है। ___अशान्ति के कारणों को दूर करने के लिए वर्णादि वैषम्य निवारणार्थ समभाव, सम्यग्दृष्टि, वात्सल्य, विश्वमैत्री, सहानुभूति, राष्ट्रीय पंचशील, व्यसनमुक्ति, परस्पर प्रेमभाव, आत्मीयता इत्यादि गुणों को अपनाने की आवश्यकता है। ___ पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ये गुण विशेष मात्रा में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में प्रायः कोमलता, वत्सलता, स्नेहशीलता, व्यसन-त्याग, आदि गुण प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्राचीनकाल में भी कई महिलाओं, विशेषतः जैन-साध्वियों ने पुरुषों को युद्ध से विरत किया है। उनकी अहिंसामयी प्रेरणा से पुरुषों का युद्ध प्रवृत्त मानस बदला है। साध्वी भदनरेखा ने दो भाइयों को युद्धविरत कर शान्ति स्थापित की मिथिलानरेश नमिराज और चन्द्रयश दोनों में एक हाथी को लेकर विवाद बढ़ गया और दोनों में गर्मागर्मी होते-होते परस्पर युद्ध की नौबत आ पहुँची। दोनों ओर की सेनाएँ युद्ध के मैदान में आ डटी। __महासती मदनरेखा ने जब चन्द्रयश और नमिराज के बीच युद्ध का संवाद सुना तो उसका सुपुप्त मातृत्व बिलख उठा । वात्सल्यमयी साध्वी ने सोचा-इस युद्ध को न रोका गया तो अज्ञान और मोह के कारण धरती पर रक्त की नदियां बह जाएँगी, यह पवित्र भूमि नरमण्डों से श्मशान बन जाएगी। लाखों के प्राण चले जाएँगे । महासती का करुणाशील हृदय पसीज उठा । वह युद्धाग्नि को शान्त करके दोनों राज्यों में शान्ति की शीतल चन्द्रिका फैलाने के लिए अपनी गुरानी जी की आज्ञा लेकर दो साध्वियों के साथ चल पड़ी युद्धभूमि के निकटवर्ती चन्द्रयश राजा के खेमे की ओर । युद्धक्षेत्र में साध्वियों का आगमन जानकर चन्द्रयश पहले तो चौंका, लेकिन अपनी वात्सल्यमयी मां को तेजस्वी श्वेत वस्त्रधारिणी साध्वी के रूप में देखा तो श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। साध्वी मदनरेखा ने सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा--"वत्स ! लाखों निरपराधों की हत्या से इस पवित्र भूमि को बचाओ। शान्ति स्थापित करो। नमिराज कोई पराया नहीं, तुम्हारा ही सहोदर छोटा भाई है। मैं तुम्हारी गुहस्थपक्षीय मां है।" यह सुनते ही चन्द्रयश के मन का रोष भ्रातृ स्नेह में बदल गया। वह सहोदर छोटे-भाई से मिलने को मचल पड़ा। वहाँ से साध्वी नमिराज के भी निकट पहँची। उसे भी समझाया। जब नमिराज को ज्ञात हुआ कि यही उसकी जन्मदात्री मां है और जिसके विरुद्ध वह युद्ध करने को उद्यत हो रहा है. वह उसका सहोदर बड़ा भाई है । बस, नमिराज भी भाई से मिलने को आतुर हो उठा। चन्द्रयश ने ज्यों ही नमि को आते देखा, दौड़कर बांहों में उठा लिया। छाती से चिपका लिया। महासती मदनरेखा की महती प्रेरणा से युद्ध रुक गया। दोनों ओर की सेना में स्नेह के बादल उमड़ आये । युद्धभूमि शान्तिभूमि बन गई। यह था-युद्ध से विरत करने और सर्वत्र शान्ति स्थापित करने का महासती का प्रयत्न । महासती पद्मावती ने पिता-पुत्र को युद्ध से विरत किया दूसरा प्रसंग है महासती पद्मावती का जो चम्पा के राजा दधिवाहन की रानी थी। उसका अंगजात पुत्र - करकण्डू, एक चाण्डाल के यहाँ पल रहा था। पद्मावती साध्वी बन गई थी। कालान्तर में HHHHHHHHHHHHHHHHHHHI विश्व-शान्ति में नारी का योगदान : मुनि नेमिचन्द्र जी | २७१Page Navigation
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