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साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
विश्व-शान्ति में नारी का योगदान
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–मनि नेमिचन्द्र जी
(शिखरजी) विश्व में अशान्ति के कारण
विश्व के समस्त प्राणियों में मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसका कारण यह है कि एक मात्र मनुष्यजाति ही मोक्ष की अधिकारिणी है। अन्य किसी भी गति या जाति का प्राणी मोक्ष का अधिकारी नहीं है । सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने के नाते मानव पर सबसे अधिक उत्तरदायित्व है कि वह दूसरे प्राणियों के साथ सहानुभूति, सहृदयता, मैत्री और आत्मीयता रखे । परन्तु वर्तमान युग का मानव ज्ञान-विज्ञान में, बल और बुद्धि में आगे बढ़ा हआ होने पर भी इन बातों से प्रायः कोसों दूर होता जा रहा है। इसके कारण विश्व में अशान्ति फैली हुई है। किसी भी राष्ट्र में शान्ति नहीं है । सभी राष्ट्र एक-दूसरे के प्रति सशंक और भयभीत बने हुए हैं। किसी को किसी राष्ट्र पर विश्वास नहीं रह गया है।
विश्व में अशान्ति के कारणों को खोजा जाए तो मोटे तौर पर निम्नलिखित कारण प्रतीत होंगे
१. युद्ध की विभीषिका, परिवार, समाज और राष्ट्र में आन्तरिक कलह । २. शस्त्रास्त्र वृद्धि, सेना वृद्धि, अणुबम इत्यादि का खतरा । ३. रंगभेद, राष्ट्रभेद, जाति-वर्णभेद, धर्म-सम्प्रदाय-भेद, राजनैतिक अतिस्वार्थ आदि
विषमताएँ। ४. दुर्व्यसनों में वृद्धि, बीमारी, प्राकृतिक प्रकोप, उपद्रव आदि । ५. सहयोग और स्वार्थत्याग की कमी।
ये और ऐसे ही कुछ कारण हैं, जिनके कारण विश्व में अशान्ति बढ़ती है। अशान्ति बढ़ने से मानव सुख-शान्तिपूर्वक जी नहीं सकता। अशान्ति के कारणों को दूर करने के उपाय
यह सच है, कि विश्व में फैलती हुई अशान्ति की आग को शांत करने के लिए अशान्ति के २७० | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान
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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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उपर्यवत कारणों को दूर किया जाना चाहिए । परन्तु इनमें से अधिकांश कारण ऐसे हैं, जिन्हें दूर करने के लिए सामूहिक पुरुषार्थ एवं परिस्थिति-परिवर्तन अपेक्षित है।
___अशान्ति के कारणों को दूर करने के लिए वर्णादि वैषम्य निवारणार्थ समभाव, सम्यग्दृष्टि, वात्सल्य, विश्वमैत्री, सहानुभूति, राष्ट्रीय पंचशील, व्यसनमुक्ति, परस्पर प्रेमभाव, आत्मीयता इत्यादि गुणों को अपनाने की आवश्यकता है।
___ पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ये गुण विशेष मात्रा में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में प्रायः कोमलता, वत्सलता, स्नेहशीलता, व्यसन-त्याग, आदि गुण प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्राचीनकाल में भी कई महिलाओं, विशेषतः जैन-साध्वियों ने पुरुषों को युद्ध से विरत किया है। उनकी अहिंसामयी प्रेरणा से पुरुषों का युद्ध प्रवृत्त मानस बदला है।
साध्वी भदनरेखा ने दो भाइयों को युद्धविरत कर शान्ति स्थापित की मिथिलानरेश नमिराज और चन्द्रयश दोनों में एक हाथी को लेकर विवाद बढ़ गया और दोनों में गर्मागर्मी होते-होते परस्पर युद्ध की नौबत आ पहुँची। दोनों ओर की सेनाएँ युद्ध के मैदान में आ डटी।
__महासती मदनरेखा ने जब चन्द्रयश और नमिराज के बीच युद्ध का संवाद सुना तो उसका सुपुप्त मातृत्व बिलख उठा । वात्सल्यमयी साध्वी ने सोचा-इस युद्ध को न रोका गया तो अज्ञान और मोह के कारण धरती पर रक्त की नदियां बह जाएँगी, यह पवित्र भूमि नरमण्डों से श्मशान बन जाएगी। लाखों के प्राण चले जाएँगे । महासती का करुणाशील हृदय पसीज उठा । वह युद्धाग्नि को शान्त करके दोनों राज्यों में शान्ति की शीतल चन्द्रिका फैलाने के लिए अपनी गुरानी जी की आज्ञा लेकर दो साध्वियों के साथ चल पड़ी युद्धभूमि के निकटवर्ती चन्द्रयश राजा के खेमे की ओर । युद्धक्षेत्र में साध्वियों का आगमन जानकर चन्द्रयश पहले तो चौंका, लेकिन अपनी वात्सल्यमयी मां को तेजस्वी श्वेत वस्त्रधारिणी साध्वी के रूप में देखा तो श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। साध्वी मदनरेखा ने सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा--"वत्स ! लाखों निरपराधों की हत्या से इस पवित्र भूमि को बचाओ। शान्ति स्थापित करो। नमिराज कोई पराया नहीं, तुम्हारा ही सहोदर छोटा भाई है। मैं तुम्हारी गुहस्थपक्षीय मां है।"
यह सुनते ही चन्द्रयश के मन का रोष भ्रातृ स्नेह में बदल गया। वह सहोदर छोटे-भाई से मिलने को मचल पड़ा। वहाँ से साध्वी नमिराज के भी निकट पहँची। उसे भी समझाया। जब नमिराज को ज्ञात हुआ कि यही उसकी जन्मदात्री मां है और जिसके विरुद्ध वह युद्ध करने को उद्यत हो रहा है. वह उसका सहोदर बड़ा भाई है । बस, नमिराज भी भाई से मिलने को आतुर हो उठा। चन्द्रयश ने ज्यों ही नमि को आते देखा, दौड़कर बांहों में उठा लिया। छाती से चिपका लिया। महासती मदनरेखा की महती प्रेरणा से युद्ध रुक गया। दोनों ओर की सेना में स्नेह के बादल उमड़ आये । युद्धभूमि शान्तिभूमि बन गई। यह था-युद्ध से विरत करने और सर्वत्र शान्ति स्थापित करने का महासती का प्रयत्न ।
महासती पद्मावती ने पिता-पुत्र को युद्ध से विरत किया दूसरा प्रसंग है महासती पद्मावती का जो चम्पा के राजा दधिवाहन की रानी थी। उसका अंगजात पुत्र - करकण्डू, एक चाण्डाल के यहाँ पल रहा था। पद्मावती साध्वी बन गई थी। कालान्तर में
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विश्व-शान्ति में नारी का योगदान : मुनि नेमिचन्द्र जी | २७१
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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
कंचनपुर के राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने से करकण्डू को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया । राजा करकण्डू और महाराज दधिवाहन दोनों में एक ब्राह्मण को एक गाँव इनाम में देने पर विवाद खड़ा हो गया । महाराज दधिवाहन ने अहंकारवश कंचनपुर पर चढ़ाई कर दी । करकण्डू भी अपनी सेना लेकर युद्ध के मैदान में आ डटा । महासती पद्मावती को पता लगा कि एक मामूली-सी बात को लेकर पिता-पुत्र में युद्ध होने वाला है तो उनका करुणाशील एवं अहिंसापरायण हृदय कांप उठा ।
वह गुरुणीजी की आज्ञा लेकर तुरन्त ही करकण्डू के खेमे में पहुँची । उसे श्वेतवासना साध्वी को युद्धक्षेत्र में देखकर आश्चर्य हुआ । श्रद्धावश नतमस्तक होकर उसने आगमन का कारण पूछा तो साध्वी ने वात्सल्यपूर्ण वाणी में कहा - " वत्स ! मैं तुम्हारी माता पद्मावती हूँ ।" पद्मावती ने उसके जन्म तथा चाण्डाल के यहाँ पलने की घटना सुनाई तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ । फिर साध्वीजी ने कहा- वत्स ! महाराज दधिवाहन तुम्हारे पिता हैं । पिता और पुत्र के बीच अज्ञात रहस्य का पर्दा पड़ा है, इसलिए तुम दोनों एक-दूसरे के शत्रु बनकर युद्ध करने पर उतारू हो गये हो । पिता-पुत्र में युद्ध होना एक भयंकर बात होगी । यह सुनकर करकण्डू राजा का हृदय पिता के प्रति श्रद्धावनत हो गया। उसने श्रद्धावश कहा- मैं अभी जाता हूँ, पिताजी के चरणों में ।
पदमावती शीघ्र ही राजा दधिवाहन के खेमे में पहुँची और बात-बात में उसने कहा कि करकण्डू चाण्डालपुत्र नहीं, वह आपका ही पुत्र है, मैं ही उसकी मां हूँ । यह कह रानी ने सारा रहस्योद्घाटन किया । राजा दधिवाहन का हृदय पुत्र - वात्सल्य से छल छला उठा, वह पुत्र मिलन के लिए दौड़ पड़ा । उधर करकण्डू भी पिता से मिलने के लिए दौड़ा हुआ आ रहा था । पिता-पुत्र दोनों स्नेहपूर्वक मिले। पिता ने पुत्र को चरणों में पड़े देख, आशीर्वाद दिया। महासती पद्मावती की सत्प्रेरणा से दोनों देशों में होने चाले युद्ध का भयंकर संकट ही नहीं टला, अपितु उनके बीच स्नेह और शान्ति की रसधारा बह चली ।
इस शान्ति और स्नेह की सूत्रधार श्री महासती पद्मावती ।
आज भी विश्व में कई जगह युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं, ये कब बरस पड़ें, कुछ कहा नहीं जा सकता । 'संयुक्त राष्ट्र संघ' तथा इससे पूर्व स्थापित "लीग ऑफ नेशन्स" इसी उद्देश्य से स्थापित हुआ है, किन्तु इसका सूत्रधार पुरुष के बदले कोई वात्सल्यमयी महिला हो तो अवश्य ही परिवार, समाज एवं राष्ट्रों के बीच होने वाले मनमुटाव, परस्पर अतिस्वार्थ, आन्तरिक कलह मिट सकते हैं । सन्त विनोबा ने विश्व के कई राष्ट्रों के आपसी तनाव और रस्सा कस्सी को देखकर कहा था - पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में प्रायः नम्रता, वत्सलता, अहिंसा की शक्ति आदि गुण अधिक देखे जाते हैं । इसलिए किसी योग्य महिला के हाथों में राष्ट्रों के संचालन का नेतृत्व देना चाहिए। महिला के हाथ में शासन सूत्र आने पर युद्ध की विभीषिका अत्यत कम हो सकती है, क्योंकि महिलाओं का करुणाशील हृदय युद्ध नहीं चाहता । वह विश्व में शान्ति चाहता है ।
यही कारण है कि एक बार विजयलक्ष्मी पण्डित संयुक्त राष्ट्र संघ की अध्यक्षा चुनी गई थी । यह बात दूसरी है कि उन्हें राष्ट्र राष्ट्र के बीच शान्ति स्थापित करने का अधिक अवसर नहीं मिल सका । यदि वह अधिक वर्षों तक इस पद पर रहती तो हमारा अनुमान है कि विश्व में अधिकांश राष्ट्रों में शान्ति का वातावरण बना देतीं ।
इसी प्रकार परिवार, समाज और राष्ट्र में होने वाले आन्तरिक कलह और मनमुटाव को दूर करने में महिलाओं ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।
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पूर्वीय देश के राजा जयराज की पुत्री 'भोगवतो' का विवाह सूरसेन राजा के पुत्र नागराज के साथ हुआ था । नागराज आकृति से जैसा भयंकर था, प्रकृति से भी वह वैसा ही भयंकर था। किन्तु भोगवती की श्रद्धा, सेवा एवं नम्रता ने उसका हृदय-परिवर्तन कर दिया। वह धर्म और भगवान् के प्रति श्रद्धाशील बन गया। उसके पिता ने उसे योग्य जानकर राज्यभार सौंपा। इस कारण उसके मझले भाई के दिल में उसके प्रति ईर्ष्या एवं जलन पैदा हो गई । एक बार नागराज तीर्थयात्रा करके अपने देश की ओर वापस लौटा तो उसके मझले भाई ने विद्रोह खड़ा कर दिया। शहर से कुछ ही दूर रास्ते में ही वह नागराज को मारने पर उतारू हो रहा था । नागराज को भी अपने छोटे भाई की बेवफाई से गुस्सा आ गया था, अतः वह भी तलवार निकाल कर लड़ने को तैयार हो गया। दोनों ओर से लड़ाई की नौबत आ गई थी। कुछ ही क्षण में अगर भोगवती बीच-बचाव न करती तो दोनों तरफ खून की नदियाँ बह जातीं। ज्योंही दोनों भाई एक-दूसरे पर प्रहार करने वाले थे, भोगवती दोनों के घोड़ों के बीच में खड़ी होकर बोली-“मैं तुम दोनों को कभी लड़ने न दूंगी। पहले मेरे पर दोनों प्रहार करो, तभी एक-दूसरे का खूनखराबा कर सकोगे।" भोगवती के इन शब्दों का जादुई असर हुआ। दोनों भाइयों की खींची हुई तलवारें म्यान में चली गईं। दोनों के सिर लज्जा से झुक गये। फिर भोगवती ने अपने मझले देवर को तथा अपने पति नागराज को भी युक्तिपूर्वक समझाया। भोगवती नागराज की पथ-प्रदर्शिका बन गई थी। उसकी सलाह से नागराज ने ध्र व के नाटक का आयोजन किया। जब ध्रव के नाटक में ऐसा दृश्य आया कि वह अपने सौतेले भाई के लिए जान देने को तैयार हो गया, तब नागराज के भाइयों से न रहा गया । वे नागराज के चरणों में गिर पड़े। नागराज ने चारों भाइयों को गले लगाया और उन्हें चार इलाकों के सूबेदार वना दिये । सचमुच, भोगवती ने पारिवारिक जीवन में शान्ति के लिए अद्भुत कार्य किया।
संसार के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि विश्व में शान्ति के लिए विभिन्न स्तर की शान्त क्रान्तियों में नारी की असाधारण भूमिका रही है। जब भी शासन सत्र उनके हाथ में आया है, वे पुरुषों की अपेक्षा अधिक सफल हुई हैं। इग्लैण्ड की साम्राज्ञी विक्टोरिया से लेकर इजराइल की गोल्डामेयर, श्रीलंका की श्रीमती भन्डारनायके, तथा भारत की भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी आदि महानारियाँ इसकी ज्वलन्त उदाहरण हैं। पुरुष-शासकों की अपेक्षा स्त्री शासिकाओं की सूझ-बूझ, करुणापूर्ण दृष्टि, शान्ति स्थापित करने की कार्यक्षमता अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुई है ।
यही कारण है कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी को कई देश के मान्धाताओं ने मिलकर गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुखा बनाई थी। उनकी योग्यता से वे सब प्रभावित थे । इन्दिरा गाँधी ने जब गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों के समक्ष शस्त्रास्त्र घटाने, अणु युद्ध न करने, तथा अणु-शस्त्रों का विस्फोट बन्द करने का प्रस्ताव रखा तो प्रायः सभी ने उसका समर्थन किया। स्व० इन्दिरा गाँधी ने ऐसा करके विश्व शान्ति के कार्यक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
इतना ही नहीं, जब भी किसी निर्बल राष्ट्र पर दवाब डालकर कोई सबल राष्ट्र उसे अपना गुलाम बनाना चाहता, तब भी वे निर्बल राष्ट्र के पक्ष में डटी रहती थीं। हालांकि इसके लिए उन्हें और अपने राष्ट्र को सबल राष्ट्रों की नाराजी और असहयोग का शिकार होना पड़ा । बंगला देश पर जब पाकिस्तान की ओर से अमेरिका के सहयोग से अत्याचार ढहाया जाने लगा, तब करुणामयी इन्दिरा गाँधी का मातृ हृदय निरपराध नागरिकों और महिलाओं की वहाँ लूटपाट, हत्या और दमन को देखकर द्रवित
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हो उठा। उन्होंने तुरन्त संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी आवाज उठाई, उसकी उपेक्षा होते देख भारत के अन्यतम कुशल योद्धाओं को भेजा और कुछ ही दिनों में बंगलादेश को पाकिस्तान के चंगुल से छुड़ाकर स्वतन्त्र कराया।
इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि विश्व-शान्ति के कार्य में महिला कितनी कार्यक्षम हो सकती है।
भारतीय स्वतन्त्रता के लिए जब गाँधी जी ने अहिंसक संग्राम छेड़ा तो कस्तूरबा गाँधी आदि हजारों नारियाँ उस आन्दोलन में अपने धन-जन की परवाह किये बिना कूद पड़ीं।
फ्रांसीसी स्वतन्त्रता-संग्राम की संचालिका 'जोन ऑफ आर्क' भी इसी प्रकार की महिला थी। उसने अपनी सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देकर भी राष्ट्र की शान्ति के लिए कार्य किया। सेवा और सहानुभूति के क्षेत्र में नारी का योगदान
सेवा और सहानुभूति भी विश्व-शान्ति के दो फेफड़े हैं। भारत की ही नहीं, विश्व भर की महिलाएँ इन दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की अपेक्षा आगे हैं। हॉस्पिटलों में घायलों, कुष्ट रोगियों तथा अन्य चेपी एवं दुःसाध्य रोगों से पीडित रोगियों की सेवा के लिए दुनियाँ में सर्वत्र नसें कार्य करती देखी गई हैं। युद्ध में भी घायलों की सेवा-शुश्रूषा प्रायः नसें ही करती हैं । मैंने स्वयं आँखों से देखा है कि आँखों के ऑपरेशन के समय नेत्र रोगी की सेवा शुश्रूषा में सैकड़ों महिलाएँ (जो पेशे से नर्स नहीं हैं) अपना योगदान देती हैं।
बीमारी, प्राकृतिक प्रकोप या उपद्रव आदि मनुष्य की अशान्ति के कारण हैं। इनके प्रकोपपीड़ित जनों की सेवा-शुश्रूषा अथवा रोग-निवारण का उपाय करना भी शान्तिदायक कार्य है। इस क्षेत्र में पुरुषों के अनुपात में, महिलाएं बहुसंख्यक रही हैं। रेड क्रास आन्दोलन को जन्म देने वाली 'फ्लोरेन्स नाइटेंगिल' को कौन नहीं जानता ? अनेक रोगों को मिटाने में अचक 'रेडियम' की आविष्कारक 'मैडम क्यूरी' का नाम विश्व-शान्ति के इतिहास में अमर है । दुर्व्यसनों से बचाने में महिलाओं का हाथ
दुर्व्यसन किसी भी प्रकार का हो, वह मनुष्य के जीवन को अशान्त बना देता है। जो देश दुर्व्यसनों का जितना अधिक शिकार हो जाता है, वहाँ उतनी ही अधिक, लूटपाट, भीति, जनत्रास तनाव, उन्मत्तता आदि बढ़ती जाती है जो अशान्ति के प्रमुख कारण हैं । दुर्व्यसनों से पुरुषों को बचाने में जैन साध्वियों तथा समस्त धर्म की गृहिणियों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योग रहा है।
छत्तीसगढ़, मयूरभंज आदि आदिवासी क्षेत्रों में जनता में बढ़ती हुई शराबखोरी तथा नशेबाजी को रोकने के लिए वहीं की एक आदिवासी महिला विन्ध्येश्वरी देवी ने जी-जान से कार्य किया है। वह जहाँ भी जाती, लोगों को पुकार-पूकार कर कहती-"शराब तथा नशैली चीजें छोड़ो, हमारा भगवान् शराब आदि का सेवन नहीं करता। इससे तन, मन, धन और जन की भयंकर हानि है।" उसके इन सीधे-सादे, किन्तु असरकारक शब्दों को सुनकर उस क्षेत्र के लाखों लोगों ने शराब तथा नशैली चीजें छोड दीं । अमेरिकन महिला करीनेशन ने कन्सास परगने में अमेरिकन महिलाओं, बालकों, नौ-जवानों आदि को पुकार-पुकार कर मद्य की बुराइयों से परिचित कराया और छुड़ा दिया।
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२७४ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान
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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ / परस्त्रीसेवन भी महान् अशान्ति का कारण है। परस्त्रीसेवन के पाप से पुरुषों को बचाने का अधिकांश श्रेय महिलाओं को है। भारतीय सती-साध्वियों तथा पतिव्रता महिलाओं ने कई पुरुषों को इस दुर्व्यसन के चंगुल से छुड़ाया है। कई शीलवती महिलाओं ने तो अपनी जान पर खेलकर भी परस्त्रीसेवनरत पुरुषों का हृदय परिवर्तन किया है। महासती राजीमती और रथनेमि का उदाहरण प्रसिद्ध है। मीरा ने गुसांईजी की परस्त्री के प्रति कुदृष्टि बदली है। शीलवती, मदनरेखा, सीता, द्रौपदी आदि सतियों के उदाहरण भी सुविख्यात हैं। अन्धविश्वास और कुरूढ़ियों के पालन से मनुष्य की अशान्ति बढ़ती है / ऐसी कई महिलाएँ हुई हैं, जिन्होंने समाज में प्रचलित अशिक्षा, पर्दाप्रथा, दहेज, अन्धविश्वास आदि कई कुप्रथाओं से बचाया है / तप-जप के क्षेत्र में अग्रणी : नारी सभी धर्मों के धर्मस्थानों को टटोला जाए तो वहाँ पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं श्रद्धा-भक्ति, तपस्या, जप आदि धर्म क्रियाओं में आगे रही हैं। वैसे देखा जाए तो तप, जप, ध्यान, त्याग, प्रत्याख्यान आदि से आत्मा की शक्तियाँ तो विकसित होती ही हैं, अगर इन्हें सूझ-बूझ और पूरी समझदारी के साथ किया जाए तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, बल आदि में वृद्धि होती है / परम्परा से अशान्ति के वाह्य कारणों में भूकम्प, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोप, कलह-यद्ध आदि के संकट तथा अन्य उपद्रव भी हैं। इन्हें दूर करने के आन्तरिक तप, जप, त्याग-प्रत्याख्यान, धर्म-क्रिया आदि भी हैं। महिलाओं में ये सब चीजें प्रचुर मात्रा में हैं, किन्तु आयम्बिल आदि तप सामूहिक रूप से करें तथा जप आदि भी सामूहिक रूप से, व्यवस्थित ढंग से करें तो निःसन्देह अशान्ति के बीज नष्ट हो सकते हैं। वर्तमान महिलाओं को अवसर मिलना चाहिए ___ आज भी प्रतियोगिता के हर क्षेत्र में नारी अपनी प्रतिभा का परिचय दे रही है। जो भी उत्तरदायित्व या कार्य उन्हें सौंपा जाता है, वे सफलता के साथ सम्पन्न कर पाती हैं। भारतीय धर्म ग्रन्थों में कहा है 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः / ' जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता क्रीड़ा करते हैं / यह प्रतिपादन अक्षरशः सत्य है / नारी समाज का भावपक्ष है और नर कर्मपक्ष / कर्म को उत्कृष्टता और प्रखरता भर देने का श्रेय भावना को है। नारी का भाववर्चस्व जिन परिस्थितियों एवं सामाजिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में बढ़ेगा, उसी में सुख-शान्ति की धारा बहेगी। माता, भगिनी, पुत्री और धर्मपत्नी के रूप में नारी सुख-शान्ति की भव्य भावनाओं की आधारशिला बनती है, बशर्ते कि उसके प्रति सम्मानपूर्ण एवं श्रद्धासिक्त व्यवहार रखा जाए / वह अपने अनुग्रह से नर को नारायण और स्वर्गीय वातावरण बनाती है। व्यक्ति, परिवार और समाज में दिव्य भावना वाले व्यक्तियों के सृजन तथा इनकी चिरस्थायी शान्ति एवं प्रगति में नारी का महत्वपूर्ण योगदान मिला है, मिलता है। यही नारी का पूजन है, यही दिव्य मानवों का निवास है / यदि नारी को दबाया और सताया न जाए, उसे विकसित होने का अवसर दिया जाए तो ज्ञान में, साधना में, त्याग-तप में, प्रतिभा, बुद्धि और शक्ति में कहीं भी वह पिछड़ी हुई नहीं रह सकती, और विश्व शान्ति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। hibhiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiHPRAPP A विश्व-शान्ति में नारी का योगदान : मुनि नेमिचन्द्र जी | 275 PER www.ja