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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ / परस्त्रीसेवन भी महान् अशान्ति का कारण है। परस्त्रीसेवन के पाप से पुरुषों को बचाने का अधिकांश श्रेय महिलाओं को है। भारतीय सती-साध्वियों तथा पतिव्रता महिलाओं ने कई पुरुषों को इस दुर्व्यसन के चंगुल से छुड़ाया है। कई शीलवती महिलाओं ने तो अपनी जान पर खेलकर भी परस्त्रीसेवनरत पुरुषों का हृदय परिवर्तन किया है। महासती राजीमती और रथनेमि का उदाहरण प्रसिद्ध है। मीरा ने गुसांईजी की परस्त्री के प्रति कुदृष्टि बदली है। शीलवती, मदनरेखा, सीता, द्रौपदी आदि सतियों के उदाहरण भी सुविख्यात हैं। अन्धविश्वास और कुरूढ़ियों के पालन से मनुष्य की अशान्ति बढ़ती है / ऐसी कई महिलाएँ हुई हैं, जिन्होंने समाज में प्रचलित अशिक्षा, पर्दाप्रथा, दहेज, अन्धविश्वास आदि कई कुप्रथाओं से बचाया है / तप-जप के क्षेत्र में अग्रणी : नारी सभी धर्मों के धर्मस्थानों को टटोला जाए तो वहाँ पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं श्रद्धा-भक्ति, तपस्या, जप आदि धर्म क्रियाओं में आगे रही हैं। वैसे देखा जाए तो तप, जप, ध्यान, त्याग, प्रत्याख्यान आदि से आत्मा की शक्तियाँ तो विकसित होती ही हैं, अगर इन्हें सूझ-बूझ और पूरी समझदारी के साथ किया जाए तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, बल आदि में वृद्धि होती है / परम्परा से अशान्ति के वाह्य कारणों में भूकम्प, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोप, कलह-यद्ध आदि के संकट तथा अन्य उपद्रव भी हैं। इन्हें दूर करने के आन्तरिक तप, जप, त्याग-प्रत्याख्यान, धर्म-क्रिया आदि भी हैं। महिलाओं में ये सब चीजें प्रचुर मात्रा में हैं, किन्तु आयम्बिल आदि तप सामूहिक रूप से करें तथा जप आदि भी सामूहिक रूप से, व्यवस्थित ढंग से करें तो निःसन्देह अशान्ति के बीज नष्ट हो सकते हैं। वर्तमान महिलाओं को अवसर मिलना चाहिए ___ आज भी प्रतियोगिता के हर क्षेत्र में नारी अपनी प्रतिभा का परिचय दे रही है। जो भी उत्तरदायित्व या कार्य उन्हें सौंपा जाता है, वे सफलता के साथ सम्पन्न कर पाती हैं। भारतीय धर्म ग्रन्थों में कहा है 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः / ' जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता क्रीड़ा करते हैं / यह प्रतिपादन अक्षरशः सत्य है / नारी समाज का भावपक्ष है और नर कर्मपक्ष / कर्म को उत्कृष्टता और प्रखरता भर देने का श्रेय भावना को है। नारी का भाववर्चस्व जिन परिस्थितियों एवं सामाजिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में बढ़ेगा, उसी में सुख-शान्ति की धारा बहेगी। माता, भगिनी, पुत्री और धर्मपत्नी के रूप में नारी सुख-शान्ति की भव्य भावनाओं की आधारशिला बनती है, बशर्ते कि उसके प्रति सम्मानपूर्ण एवं श्रद्धासिक्त व्यवहार रखा जाए / वह अपने अनुग्रह से नर को नारायण और स्वर्गीय वातावरण बनाती है। व्यक्ति, परिवार और समाज में दिव्य भावना वाले व्यक्तियों के सृजन तथा इनकी चिरस्थायी शान्ति एवं प्रगति में नारी का महत्वपूर्ण योगदान मिला है, मिलता है। यही नारी का पूजन है, यही दिव्य मानवों का निवास है / यदि नारी को दबाया और सताया न जाए, उसे विकसित होने का अवसर दिया जाए तो ज्ञान में, साधना में, त्याग-तप में, प्रतिभा, बुद्धि और शक्ति में कहीं भी वह पिछड़ी हुई नहीं रह सकती, और विश्व शान्ति के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। hibhiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiHPRAPP A विश्व-शान्ति में नारी का योगदान : मुनि नेमिचन्द्र जी | 275 PER www.ja
SR No.211939
Book TitleVishwa Shanti me Nari ka Yogadana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandramuni Siddhantideva
PublisherZ_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf
Publication Year1997
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Woman
File Size829 KB
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