Book Title: Visesavasyakabhasya Part 1
Author(s): Jinbhadrasuri, Dalsukh Malvania
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 18
________________ AU ७६२ परमावधिक्षेत्रम् (नि० ३०) ५९५ नियतादीनामवधिज्ञानानां प्रतिविशेषः ७५० घन-णि-प्रतरविचारः ५९८ प्रतिपात्युत्पादिनोरवध्योश्चिन्ता मध्यमावधिक्षेत्रविचार कालसापेक्ष - ___ (नि० ६१-६२) ७४४ विचारः (नि० ३१-३६) ६०४ उत्पाद-व्ययादीनां योगपद्याऽयोगपद्यविपये अवधेर्विषये द्रव्यपरिमाणचिन्ता (नि. ३७) द्रव्यादिपु भजना ७९५ द्रव्य-गुण-पर्यायविषये परस्परनिबन्धप्रासंगिकी पुद्गलवर्गणाचिन्ता निरूपणम् (नि०६३) ७५६ (नि० ३८-३९) ६२५ दर्शन-ज्ञान-विभङ्गरूपावधेरल्पबहुत्वम् वर्गणासु गुरुलघुचिन्ता (नि० ४०) ६५४ (नि०६४) ७५९ व्यवहारनिश्चयनयाभ्यां गुरुलघुविचारः ६... देश-सर्वावधेः स्वामिचिन्ता (नि० ६५) क्षेत्र-काल-द्रव्याणां सापेक्षनिवन्धः (नि ४१-४२) ६६५ परमावधेविषयनिरूपणम् (नि० ४३) ६७१ क्षेत्रतोऽवधेश्चिन्ता (नि० ६६) ७६८. गतीन्द्रियाद्यपेक्षयाऽवधेर्विचारः (नि०.६७) परमावधेः क्षेत्रम् (नि०४४) ६८१ तिरश्चामवधिनिरूपणम् (नि० ४५) ६८६ भयपत्ययावधिनिरूपणम् ऋद्धिप्राप्तानामवधिरिति प्रासंगिकी ऋद्धिनारकजीवानामवधिक्षेत्रम् (नि० ४६) ६८९ चर्चा (नि० ६८-७४) ७७५ देवानामधोवधिक्षेत्रम् नि० ४७-४९) ६९१ संक्षेपरुचिहितार्थं पुनरवधिविषयचर्चा ८०२ देवानां तिर्यगुपरि चावधेः क्षेत्रम् २६ मनःपर्ययज्ञानविवरणम् (नि० ७५) (नि० ५०-५१) ६९४ मनःपर्यये दर्शनविचारः ८११ जघन्यायवधेः स्वामिचिन्ता (नि० ५२) २७ केवल ज्ञान विवरणम् ( नि० ७६) ६९९ ८१८ अवधेः संस्थानम् (नि० ५३-५४) ७०० केवलिनो वचनयोगो न तु ध्रुतमिति, तथा आनुगामिकाऽनानुगामिकावधिविचारः . श्रुतं भवति शेपमिति निरूपणम् (नि० ५५) ७१० (नि० ७७) ८२४ अवस्थितावधिचिन्ता (नि०५६-५७) _ 'श्रुतं भवति शेषम्' इत्यस्य व्याख्या ८२५ ७१३ (४) समुदायार्थद्वारम् ८३३ १ शास्त्राभिधानानुयोगः ८३३ चलावधिनिरूपणम् (नि० ५८) ७२४ ध्रुतस्यैवानुयोगसंभव इति निरूपणम् ८३३ तीव-मन्दावधिचिन्ता (नि०५९-६०)७३४ । अनुयोगशब्दस्य निरुक्तिः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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