Book Title: Vikramaditya Chaupai
Author(s): Somgani, 
Publisher: Mansor

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Page 30
________________ श्राविया ॥ चा रातै समाज धान बोली र दिया य ली । कुंके एमकता राजायो ते 4 शपरु धन मुमै । स्पा ने को बोल तु॥५॥ जा ऐ है तिलन पहा खान त मुली मादावि चोर एन कतै मुषबीदते टाकूर पादादि घोषात ति दां६ पीला पार सिधवमनि वैगुफातिहा मुक् तिलवासा लाजरसेर यास है। पो दो निजरथान के इस विला वले नाव वाटी दमा दाम पर नो एक्वन सुलगते चारे चार पास तानि जर था न के पाचो मादा घार ॥ ठाल ॥ १९५ मी॥ सा दिन का का बागी ॥ दायक लोयां पकाव बो॥ देसी रा अपजस पल मा मनि म जैसे है। मामाजि मुली जिले ॥ विक मनारिके दवा टाई नयले नि रषिजे लै।॥। १॥ है। । तबषापूर तिसरे बोले बाली लो मुजमन मा देता। पाला ते जाली रेल ॥ २ ॥ ॥बैमा कशि जैविक हि जैसो को दिन र प्रीत नवी मुऊ दे वैसी ॥३॥ नाविक मविन वै। जो सा जी बैजाउलो ॥ ॥ पटरालीमा ददनो मे दपायलमतिवित्री जा राय मंदिर लायो लौ त मं. काउचा पोटवाया. लौ॥ ॥ ब राणी प्रति घेषु वासामिना लो। ॥ का माना या न मैं के द्रावारलाई पनि बीमकी दिल॥ ॥ षा पर नेईक या पनी ध की पाला देवं ताले का माम जमाई मादरी १६ ६ करि एक पाटि निजहां सी पी लो।॥ L ताति मला से वेदा घाल ॥रे मुर थाम लगता लौ॥

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