Book Title: Vikas ka Mukhya Sadhan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ ८६ धर्म और समाज पात्रकी ओरसे हटकर दूसरी ओर झुक पड़ेगा और इस झुकावके साथ ही प्रथम पात्रके प्रति कर्तव्य पालनके चक्रकी, जो पहलेसे चल रहा था, गति और दिशा बदल जायगी । दूसरे पात्रके प्रति भी वह चक्र योग्य रूपसे न चल सकेगा और मोहका रसानुभव जो कर्तव्य पालन से सन्तुष्ट हो रहा था कर्तव्य पालन करने या न करनेपर भी अतृप्त ही रहेगा । माता मोहवश अंगजात बालकके प्रति अपना सब कुछ न्यौछावर करके रसानुभव करती है, पर उसके पीछे अगर सिर्फ मोहका भाव है तो रसानुभव बिलकुल संकुचित और अस्थिर होता है । मान लीजिए कि वह बालक मर गया और उसके बदले में उसकी अपेक्षा भी अधिक सुन्दर और पुष्ट दूसरा बालक परवरिशके लिए मिल गया, जो बिलकुल मातृहीन है । परन्तु इस निराधार और सुन्दर बालकको पाकर भी वह माता उसके प्रति अपने कर्तव्य पालन में वह रसानुभव नहीं कर सकेगी जो अपने अंगजात बालकके प्रति करती थी । बालक पहलेसे भी अच्छा मिला है, माताको बालककी स्पृहा है और अर्पण करने की वृत्ति भी है। बालक भी मातृहीन होनेसे बालकापेक्षिणी माताकी प्रेम-वृत्तिका अधिकारी है । फिर भी उस माताका चित्त उसकी ओर मुक्त धारासे नहीं बहता । इसका सब एक ही है और वह यह कि उस माताकी न्यौछावर या अर्पणवृत्तिका प्रेरक भाव केवल मोह था, जो स्नेह होकर भी शुद्ध और व्यापक न था, इस कारण उसके हृदयमें उस भाव के होनेपर भी उसमें से कर्त्तव्य पालन के फव्वारे नहीं छूटते, भीतर ही भीतर उसके हृदयको दबाकर सुखीके बजाय दुखी करते हैं, जैसे खाया हुआ पर हजम न हुआ सुन्दर अन्न । वह न तो खून बनकर शरीरको सुख पहुँचाता है और न बाहर निकलकर शरीरको हलका ही करता है । भीतर ही भीतर सड़कर शरीर और चित्तको अस्वस्थ बनाता है । यही स्थिति उस माताके कर्त्तव्य पालन में अपरिणत स्नेह भावकी होती है । हमने कभी भयवश रक्षण के वास्ते झोपड़ा बनाया, उसे सँभाला भी। दूसरोंसे बचने के निमित्त अखाड़ेमें बल सम्पादित किया कवायद और निशानेबाजी से सैनिक शक्ति प्राप्त की, आक्रमणके समय ( चाहे वह निजके ऊपर हो, कुटुम्ब, समाज या राष्ट्र के ऊपर हो ) सैनिकके तौरपर कर्त्तव्य पालन भी किया, पर अगर वह भय न रहा, खासकर अपने निजके ऊपर या हमने जिसे अपन्स > Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9