Book Title: Vidyano Moj Bharyo Vyasang Author(s): Jayant Kothari Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 230 भाषाविज्ञाननी अन्य सर्व शाखाओ भाषातत्त्वज्ञान, रचनालक्षी भाषाविज्ञान, शब्दार्थशास्त्र, शैलीविज्ञान वगेरे - साथे पण काम पाडता रह्या. भायाणी साहेबनी कारकिर्दीए आम विविध रंग धारण कर्या. वेदान्त एटले के ब्राह्मण परंपरा भायाणी साहेबनो विद्यार्थीकाळनो अभ्यासविषय, तो प्राकृत-अपभ्रंशना अभ्यासने अनुषंगे एमणे जैन परंपराना अधिकारी विद्वान तरीके प्रतिष्ठा मेळवी. कुटुंबमां जैन अने वैष्णव परंपरानुं संमिश्रण अने दादीमाना कंठे गवातां धोळ-पदोए वैष्णवपरंपरानुं पीयूषपान कराव्यु. मध्यकालीन साहित्यना अध्ययने, वळी, संतसाहित्य अने लोकसाहित्यनो रस केळव्यो. आपणा साहित्य अने संस्कारनो विपुल वारसो, आ रीते, भायाणीसाहेबने हस्तगत बनी रह्यो अने आ संस्कारवारसानुं उद्घाटन ए एमनुं एक विद्याकार्य बनी रह्यं. आ परथी रखे कोई भायाणी साहेबने केवळ पुरातनताना उपासक तरीके ओळखे. ए आधुनिकताना पण एवा ज उपासक छे. ए संस्कृत काव्यशास्त्रना सिद्धांतो समजावे ने आजना समयमां एनी प्रस्तुतता सिद्ध करे, ते साथे पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र अने आधुनिक साहित्यविचारमां पण गति करता रहे अने आपणने गति करावता रहे; प्राचीन संस्कारवारसानी खेवना प्रगट करे, ते साथे आपणी आजनी सांस्कृतिक कटोकटी, चितवन करे; मध्यकालीन गुजरातीमां जेटलो रस ले तेटलो ज आजना गुजराती साहित्यमा पण ले. 'आज' साथेनो आ अनुबंध भायाणीसाहेबनी विद्वत्ताने सर्वभोग्य बनावे छे. सर्वदेशीयता उपरांत अद्यतनता ए भायाणीसाहेबनी विद्वत्तानुं विशिष्ट लक्षण छे. पोताना सर्व रसविषयोमां अद्यतन प्रवाहोथी भायाणीसाहेब जेटला परिचत रहे छे तेटला अन्य कोई विद्वान भाग्ये ज रहेता हशे. आ अद्यतनता पाछी सांकडी सीमानी नथी होती, भायाणीसाहेबनी दृष्टि देशपरदेशमां सर्वत्र फरी वळे छे. आ रीते पण एमनामां सर्वदेशीयता छ एम कहेवाय. विदेशोमां थतां विद्याकार्यों तरफ भायाणीसाहेबनी नजर वारंवार जाय छे, केम के एमाथी नवा अभिगमो अने नवां प्रतिपादनो प्राप्त थाय छे. भायाणीसाहेबमां नवा ज्ञाननी तीव्र झंखना छे अने ए झंखना एमना अभ्यासविषयो-साहित्यविद्या अने भाषाभ्यास-पूरती नथी होतो, जीवनना बीजा अनेक विचारक्षेत्रोने स्पर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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