Book Title: Vidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ (१७) ॥ अथ श्रीनेमीनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ श्रमे तुमरा बोरुडां गुण जाणो डोके ना ॥ ॥ए देशी॥ ॥राजुल कहे प्रिया नेमजी, गुण जाणो जो के ना ॥ केम बोडी चाख्या निरधार ॥ हे गुण मानो बो के ना ॥ पुरुष अनंते जोगवी ॥ गुण ॥ पी यु शुं मोही रह्या तेणे नार ॥ हे गुण ॥१॥ कोडी गमे जेहने चाहे ॥ गुण ॥ शो ते नारी थी रंग ॥ हे गुण ॥ पण जग उखाणो कह्यो । गुण ॥ होवे सरिसा सरिसो संग हे ॥ गुण ॥ ॥२॥ हुँ गुणवंती गोरडी ॥ गुण ॥ ते निर्गुण निजी नार ॥ हे गुण ॥ हुँ सेवक ९ राउली ॥ गुण ॥ ते सामुं न जुवे लगार ॥ हे गुण ॥३॥ जगमां ते गुण आगली ॥ गुण ॥ जेणे वश की धो जरतार ॥ हे गुण ॥ मन वैरागें वालीयु ॥ गु ण ॥ ले राजुल संयम ना र ॥ हे गुण ॥४॥ बहेनीने मलवा जणी ॥ गुण ॥ पीयु पहेला ते इ उजाय ॥ हे गुण ॥ संग लश ते नारने ॥ गु ण ॥ रही अनुलवशुं लयलाय ॥ हे गुण ॥५॥ समुख विजय कुल चंदलो ॥ गुण ॥ शिवादेवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220