Book Title: Vidhipaksh Gacchiya Shravakna Daivasikadik Panch Pratikraman Sutra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 215
________________ (२०३) समाजें ॥ असाधु जाणी गुरु राग बंद्या, दो करी साध सधा विनिंद्या ॥ ए॥ सराग नीराग तणीज वाणी, समान निःशंकित में वखाणी ॥ श्रावी जिवा रें सुख लाल वेला, थया तदा पुर्गति दुःखवेला ॥ १०॥रे जीवडा शो परतावो कीजें, जे बीज वाव्यु फल ते खुणीजें ॥ जम्यो घणो कर्मवशें अपार, सं सार सामी करुणा नंमार ॥ ११॥ तारो हवे तार क तार कांति, टालो वली मुफ जयजीडन्त्रांति ॥ प्रमाद पंचे न शक्यो निवारी, जे काठिया तेरह शत्रु जारी ॥ १५ ॥ हुँ एणे गाढ्यो प्रनु बुं सता व्यो॥ तो एहशुं रोष न लेश आव्यो ॥ एलें गयो आज लगी जमारो, ए मानुषो जन्म लही समा रो॥ १३ ॥ पगे तुमारे जिन शिश नाम्यो, तो ते वली वांडित सर्व पाम्यो ॥ तुमो विना तारक को न जाएं, को देव बीजो हियडे न आएं ॥ १४ ॥ सा वद्य टाली जिन धर्म नांखे, ते साधु सूधा चि त्तने उल्हासे ॥ जाणुं दया धर्मज एक साचो, तु मो विना देव न अन्य जाचो ॥ १५ ॥ ए तत्त्व त्रणे मन शुद्ध पाएं, मिथ्यात्वनी संगति दूर टा झुं ॥ जे जे जगें दीसत मिश्र पद, ते सदहे मान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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