Book Title: Vichar ki Samasya Kaise Sulze
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ भटक जाना बिल्कुल दूसरी बात है। ध्यान करने से विचार आने बन्द नहीं होंगे। निर्विचार की स्थिति न जाने कब आएगी ? वह आएगी भी तो चौबीस घंटे नहीं रहेगी। निर्विचार की स्थिति आधे घंटे भी बनी रह जाए तो यह एक बड़ी उपलब्धि है । जागरूकता बढ़े ध्यान का प्रयोजन है - जो हो रहा है, उसके प्रति जागरूक हो जाना। शरीर में रक्त का संचार हो रहा है । हमारी रक्त प्रणाली निरंतर आना काम कर रही है । हमारे शरीर में हृदय और नाड़ियां निरंतर धड़क रही हैं। इनके माध्यम से कितने रसायन बन रहे हैं, कितने प्रोटीन बन रहे हैं। शरीर में इतनी क्रियाएं संचालित हो रही हैं, जैसे कोई कारखाना चल रहा हो। क्या इन सबको बन्द कर दें ? ध्यान की अवस्था में श्वास भी चलता है, रक्त का प्रवाह भी चलता है, हृदय भी चलता है। जब इतने सारे चलते हैं तो एक बेचारे विचार ने ही क्या बिगाड़ा है ? केवल विचारों को ही क्यों रोकें ? ध्यान से हमें सीखना यह है कि शरीर में जो कुछ भी हो रहा है, उसे देख सकें। घर में प्रवेश के लिए दरवाजा है तो हर किसी के साथ चौर भी घुस सकता है। यह प्रबन्ध कर सकना बहुत मुश्किल है कि कोई आए ही नहीं । इतना किया जा सकता है कि घर में कोई आए ही नहीं । इतना किया जा सकता है कि घर में कोई प्रवेश करे तो मकान मालिक जागरूक रहे । वह यह देखता रहे कि आने वाला हितैषी है या अनिष्टकारी ? ध्यान का अर्थ है अपनी जागरूकता का विकास। हमारी जागरूकता बढ़ गयी तो हम काम में सफल हो जाएंगे । जागरूकता नहीं बढ़ी तो समझना चाहिए कि जो काम होना चाहिए, वह पूरा नहीं हुआ । आभार किस बात का सबसे पहले बुरे विचारों को रोकने का अभ्यास करना चाहिए। आदमी बहुत बुरी बातें सोचता है, बुरा चिंतन करता है। एक आदमी डाक्टर के पास गया। हाथ जोड़ कर बोला - "डाक्टर साहब, नमस्कार ।" डाक्टर ने उसकी ओर देखा और आने का कारण पूछा। उसने कहा- "बस ऐसे ही आभार व्यक्त करने चला आया । " डाक्टर ने कहा- मैंने तो तुम्हें कभी देखा ही नहीं, कभी तुम्हारी कोई चिकित्सा भी नहीं की, तुम्हें पहचानता भी नहीं, फिर आभार किस बात का ? वह बोला- “आपने मेरी नहीं, किन्तु मेरे चाचा की चिकित्सा की है। वे जल्दी ही मर गये। उनकी सारी संपत्ति मुझे ही मिली है। आपने कल्याण कर दिया, इसलिए आभार तो व्यक्त करूंगा ही । " Jain Education International 2010_03 दर्शन दिग्दर्शन १४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9