Book Title: Vichar ki Samasya Kaise Sulze
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 2
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ क्या आप भी पत्थर बन जाना चाहते हैं ? ध्यान का काम यदि पत्थर बनाना है तो फिर ध्यान न करना ही अच्छा है। हमें बहुत स्पष्ट रूप से समझाना है कि मनस्वी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रक्रिया है विचार | विचार निरंतर आते रहते हैं। ध्यान में यह समस्या इसलिए आती है, क्योंकि हमने मान लिया है कि ध्यान का मतलब विचार का न होना है। ध्यान का प्राथमिक अर्थ विचार का न होना नहीं है। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि विचार अनावश्यक न आएं। विकार पैदा करने वाले विचार न आएं। विचार भटकाने वाले न आएं। सबसे पहले इस पर नियंत्रण होना चाहिए। विचारों की भूलभुलैया विचारों का बहुत बड़ा भटकाव है, भूलभुलैया है। आदमी भूलभुलैया के भीतर प्रवेश करता है तो उसमें फंसता ही जाता है। बाहर निकलने का रास्ता खोज नहीं पाता। यह मकान की भूलभुलैया तो बहुत छोटी होती है। लखनऊ का इमाम बाड़ा तो इस दृष्टि से कुछ भी नहीं है । यह विचारों की भूलभुलैया इतनी बड़ी है कि जो उलझ गया, वह उलझ गया। उससे निकल पाना सहज नहीं होता। उससे निकलने का कोई दरवाजा आसानी से नहीं मिल पाता। एक अन्धा आदमी मीलों तक फैली एक चहारदीवारी में प्रवेश कर गया । निकलने और प्रवेश करने के लिए उसमें मात्र एक ही दरवाजा था। भीत के सहारे चलते-चलते अंधे आदमी ने दरवाजा ढूंढने की कोशिश की। जब दरवाजा निकट आया तो उसके सिर में खुजली आ गयी। सिर खुजलाने के उस एक क्षण में ही वह चूक गया और दरवाजे से आगे बढ़ गया। अब पुनः दरवाजा कब आएगा? ध्यान का अर्थ ऐसी ही स्थिति आज मनुष्य की है। विचारों का इतना भटकाव है कि जहां भी दरवाजा आने को होता है, कहीं न कहीं खुजली शुरू हो जाती है। हम बाहर निकलने से चूक जाते है। प्रश्न है हम क्या करें ? क्या विचार करना छोड़ दें या विचार करना सीखें । ध्यान का मतलब विचार को छोड़ना नहीं है। विचार आएं तो निराश नहीं होना है। ध्यान का मतलब है विचार के प्रति जागरूकता। विचार की प्रेक्षा करें, उसे देखें। ध्यान के दौरान जो भी विचार आए, मात्र उसे देखें। देखना एक बात है, उसके साथ बह जाना, विचार से Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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