Book Title: Vichar Kanika Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 3
________________ १६६ धर्म और समाज योग्य ही नहीं माना किन्तु उसे बिल्कुल काल्पनिक माना गया है । किन्तु हम देखते हैं कि आत्म-समानता और आत्माद्वैत के सिद्धान्तको कट्टरता से माननेवाले भी जीवन-व्यवहारमें कर्मवैषम्यको ही साहजिक और अनिवार्य मानकर चलते हैं। यही कारण है कि आत्म-समानताके प्रति अनन्य पक्षपात रखनेवाले जैन या वैसे ही दूसरे पंथके लोग जातिगत उच्च-नीचताको मानो शाश्वत मानकर ही व्यवहार करते हैं। इसके कारण स्पर्शास्पर्शका मारणान्तिक वित्र समाजमें व्याप्त हो गया है, फिर भी इस भ्रमसे वे मुक्त नहीं होते । स्पष्ट है कि उनका सिद्धान्त एक दिशामें है, और धर्म- जीवन व्यवहार दूसरी दिशा में । यही स्थिति अद्वैत सिद्धान्तका अनुसरण करनेवालोंकी है । वे द्वैतको तनिक भी अवकाश न देकर अद्वैतकी तो बातें करते हैं, किन्तु उनका, यहां तक कि संन्यासियोंका भी, आचरण द्वैत और कर्मवैषम्यके अनुसार ही होता है । परिणाम यह है कि तत्त्वज्ञानका विकास अद्वैत तक होनेपर भी उससे भारतीय जीवनको कोई लाभ नहीं हुआ । उल्टा वह आचरणकी दुनियामें फँसकर छिन्नभिन्न हो गया है । यह एक ही दृष्टान्त इस बातकी सिद्धिके लिए पर्याप्त है कि तत्त्वज्ञान और धर्मकी दिशा एक होना आवश्यक है । उन्नत अवनत - २- अच्छी बुरी हालत, अवस्था और सुखदुः एकी सार्वत्रिक विषमताका पूर्णरूपसे खुलासा केवल ईश्वरवाद या ब्रह्मबाद मेंसे मिलने का संभव नहीं था, अतएव स्वाभाविक रूपसे ही परापूर्वसे प्राप्त वैयक्तिक कर्मफलका सिद्धान्त, मनचाहे प्रगतिशील - वादको स्वीकार कर लेनेपर भी - अधिकाधिक दृढ होता गया । 'जो करे वही भोगे ' ' प्रत्येकका भाग्य भिन्न है * 'बोवे वही काटे ' ' काटनेवाला और फल चखनेवाला एक और बोनेवाला दूसरा, यह असंभव है ' ये सब खयालात केवल वैयक्तिक कर्मफलके सिद्धान्तके आधारसे रूढ हुए और सामान्य रूपसे प्रजा - जीवनके प्रत्येक अंगमें इतने गहरे दृढमूल हो गये कि यदि कोई कहता है कि 'किसी एक व्यक्तिका कर्म केवल उसीमें फल या परिणाम उत्पन्न नहीं करता किन्तु उसका असर उस कर्मकर्ता व्यक्तिके अलावा सामूहिक जीवनमें भी ज्ञात अज्ञात रूपसे फैल जाता है, ' तो तथाकथित बुद्धिमान् वर्ग भी चकित हो जाता है और प्रत्येक संप्रदाय के विद्वान् या विचारक उसके विरोध में अपने शास्त्रीय प्रमाणोंका ढेर लगा देते हैं । इस कारण कर्मफलका नियम वैयक्तिक होने के साथ ही For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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