Book Title: Vibudh Shridhar evam Unka Pasnaha chariu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 9
________________ प्रचुर भौगोलिक सामग्री कवि श्रीधर मात्र भावनाओंके ही चितेरे नहीं, अपितु उन्होंने जिस भूखण्ड पर जन्म लिया था, उसके कण-कणके अध्ययनका भी प्रयास किया था। यही कारण है कि पासणाहचरिउमें विविध नगर एवं देशवर्णन, नदी, पहाड़, सरोवर, वनस्पतियाँ, विविध मनुष्य जातियाँ, उनके विविध व्यापार, भारत भूमिका तत्कालीन राजनीतिक विभाजन, विविध देशोंके प्रमुख उत्पादन तथा उनके आयात-निर्यात सम्बन्धी अनेक भौगोलिक सामग्रियोंके चित्रण भी कविने किये हैं। उदाहरणार्थ कुछ सामग्री यहाँ प्रस्तुत की जाती है । कुमार पार्व जिस समय काशी राज्यके युवराज पदपर प्रतिष्ठित किए जाते हैं, उस समय निम्न छब्बीस देशोंके नरेश उन्हें सम्मान प्रदर्शन हेतु तलवार हाथमें लेकर उनके राज दरबारमें पधारते हैं । उक्त देशोंके वर्गीकृत नाम इस प्रकार हैं : पूर्व भारत-वज्रभूमि, अंग, बंग, कलिंग, मगध, पापा, खश एवं गौड़ । उत्तर भारत-हरयाणा, टक्क, चौहान, जालन्धर, हाण एवं हण । पश्चिम भारत-गुर्जर, कच्छ और सिन्धु । दक्षिण भारत-कर्नाटक, महाराष्ट्र, चोड़ एवं राष्ट्रकूट । मध्य भारत-मालवा, अवध, चन्दिल्ल, भादानक एवं कलचुरी। युवराज पार्श्व जब यवनराजके साथ युद्ध करने हेतु प्रस्थान करने लगते हैं, तब निम्न नरेशोंने अपने-अपने देशोंमें निर्मित निम्न सुप्रसिद्ध वस्तुएँ युवराज पार्श्वकी सेवामें भेंट स्वरूप भेजों । मणिमेखलाएँ एवं हारलताएँ-कीर देश, पाञ्चाल एवं टक्क देश, पालम्ब एवं जालन्धर । बाणों द्वारा अभेद्य मुकुट-सोन देश । केयूर-सिन्ध देश । कंकण-हम्मीर राजा द्वारा प्रेषित । कुण्डल-मालव । निवसन वस्त्र-खश । चूड़ारत्न नेपाल। ऐसा प्रतीत होता है कि ग्यारहवीं-बारहवीं सदीमें उक्त देशोंमें इन वस्तुओंका विशेष रूपसे निर्माण किया जाता था तथा उनका दूसरे देशोंमें निर्यात भी किया जाता रहा होगा। असम्भव नहीं कि इन व्याणरोंसे कवि श्रीधरके आश्रयदाता साह नट्टलका भी सम्बन्ध रहा हो क्योंकि कविने साह नद्रलका जिन-जिन देशोंसे सम्बन्ध बतलाया है, इस सूचीमें उक्त देशोंका भी नाम आता है । मध्यकालीन भारतकी आर्थिक एवं व्यापारिक दृष्टिसे तो ये उल्लेख महत्त्वपूर्ण हैं ही, तत्कालीन कला, सामाजिक अभिरुचि एवं विविध निर्माण सामग्रीके उपलब्धि-स्थलोंकी दृष्टिसे भी उनका अपना विशेष महत्त्व है। काशी देशकी ओरसे यवनराजके साथ लोहा लेनेवाले राज्योंसे नेपाल, जालन्धर, कीरट्ठ एवं हमीरने हाथियोंके समान चिघाड़ते हुए, सिन्ध, सोन एवं पाञ्चालने भीमके समान मुखवाले बाण छोड़ते हुए तथा मालव, टक्क एवं खशने दुर्दम यवनराजके साथ विषम युद्ध करके काशी नरेशका साथ दिया। प्रतीत होता है कि उक्त राज्योंने अपना महासंघ बनाकर काशी नरेशका साथ दिया होगा, जिसमें कर्नाटक, लाट, कोंकण, वराट, विकट, द्राविड़, भृगुकच्छ, कच्छ, अति विकट वत्स, डिंडीर, अत्यन्त दुःसाध्य विन्ध्य, कोशल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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