Book Title: Vibudh Shridhar evam Unka Pasnaha chariu Author(s): Rajaram Jain Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 7
________________ सरलताका स्रोत बनकर उमड़ रही है । वहाँ कवि कहता है, “शिशु पार्श्व कभी तो माताके अमृतमय दुग्धका पान करते, कभी अँगूठा चूसते, कभी मणि जटित चमचमाती गेंद खेलते, तो कभी तुतली बोलीमें कुछ बोलनेका प्रयास करते । कभी तो वे स्वयं रेंग-रेंगकर चलते और कभी परिवारके लोगोंकी अँगुली पकड़कर चलते। जब वे माता-पिताको देखते, तो अपनेको छिपाने के लिए हथेलियोंसे अपनी ही आँखें ढंक लेते। चन्द्रमाको देखकर वे हँस देते थे। उनका जटाजूटधारी शरीर निरन्तर धूलि-धूसरित रहता था। खेलते समय उनकी करधनीकी शब्दायमान किकिणियाँ सभीको मोहती रहती थीं।" कविके इस बाल-लीला वर्गनने हिन्दीके भक्त कवि सूरदासको सम्भवतः सर्वाधिक प्रभावित किया है। पावकी बाल-लीलाओंके वर्णनोंका प्रभाव कृष्णके बाल्य वर्णनमें स्पष्ट रूपेण दृष्टिगोचर होता है। कहीं-कहीं तो अर्धालियोंमें भी यत्किञ्चित हेर-फेरके साथ उनका सर द्वारा उपयोग कर लिया गया प्रतीत होता है । यथा : श्रीधर-अविरल धूलि धूसरिय गत्त, २।१५।५ सूर-धूरि धूसरित गात, १०।१००।३ श्रीधर होहल्लरु (ध्वन्यात्मक ), २।१४।८ सूर-हलरावे ( ध्वन्यात्मक ), १०।१२८।८ श्रीधर-खलियक्खर वयणिहि वज्जरन्तु, २।१४।३ सुर-बोलत श्याम तोतरी बतियाँ, १०११४७ श्रीधर-परिवारंगुलि वग्गउ सरन्तु , २।१४।४ सूर-हरिकौं लाइ अंगुरी चलन सिखावत, १०।१२८८ इस प्रकार दोनों कवियोंके वर्णनोंकी सदशताओंको देखते हए यदि संक्षेपमें कहना चाहें तो कह सकते हैं कि श्रीधरका संक्षिप्त बाल-वर्णन सूरदास कृत कृष्णकी बाल-लीलाओंके वर्णनके रूपमें पर्याप्त परिष्कृत एवं विकसित हुआ है। मध्यकालीन उत्तरभारतीय वनस्पति जगत् कवि श्रीधर द्वारा वणित विविध वनस्पतियाँ भी कम आश्चर्यजनक नहीं। अटवी वर्णनके प्रसङ्गमें विविध प्रकारके वृक्ष, पौधे, लतायें, जिमीकन्द आदिके वर्णनोंमें कविने मानों सारे प्रकृति जगत्को ही साक्षात् उपस्थित कर दिया है। आयुर्वेद एवं वनस्पतिशास्त्रके मध्यकालीन इतिहासकी दृष्टिसे कविको यह सामग्री बड़ी महत्त्वपूर्ण है। कवि द्वारा वर्णित वनस्पतियोंका वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है। शोभावृक्ष-हिंताल, तालूर, साल, तमाल, मालूर, धर, धम्मण, बंस, खदिर, तिलक, अगस्त्य प्लक्ष, चन्दन । फलवृक्ष-आम्र, कदम्ब, नींबू, जम्बीर, जामुन, मातुलिंग, नारंगी, अरलू, कोरंटक, अंकोल्ल, फणिस, प्रियंगु, खजूर, तिन्दुक, कैंथ, ऊमर, कठूमर, चिचिणी (चिलगोजा), नारिकेल, वट, सेंवल, ताल । पुष्पवृक्ष-चम्पक, कचनार, कणवीर (कनेर), टउह, कउह, बबूल, जासवण्ण (जाति ?) शिरीष, पलाश, बकूल, मुचकुन्द, अर्क, मधुवार । फल एवं पुष्प लताएँ-लवंग, पूगफल, विरिहिल्ल, भल्लु, केतकी, कुरव, कर्णिकार, पाटलि, सिन्दूरी, दाक्षा, पुनर्नवा, वाण, वोर, कच्चूर । कंद-जिमीकन्द, पीलू, मदन एवं गंगेरी । -- २३३ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11