Book Title: Vibudh Shridhar evam Unka Pasnaha chariu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 1
________________ Tags श्रीधर एवं उनका पासणाहचरिउ डा० राजाराम जैन, जैन कालेज, आरा ( बिहार ) स्रोत संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओंके कवियोंमें भगवान पार्श्वनाथका जीवन चरित बड़ा ही लोकप्रिय रहा है । आगम साहित्य एवं विविध महापुराणोंमें उनके अनेक प्रासंगिक कथानक तो उपलब्ध होते ही हैं, उनके अतिरिक्त स्वतन्त्र, सर्व प्रथम एवं महाकाव्य शैलीमें लिखित जिनसेन ( प्रथम ) कृत पाश्वभ्युदय काव्य ' ( वि० सं० ९ वीं सदी) एवं वादिराजकृत पार्श्वनाथचरितम् ( वि० सं० १०८२ ), संस्कृत भाषामें, देवभद्र कृत पासणाहचरिय ( वि० सं० १९६८ ) प्राकृत भाषामें तथा कवि पद्मकीर्ति कृत पासणाहचरिउ ( वि० सं० १९८१ ) अपभ्रंश भाषामें उपलब्ध है । इन काव्य रचनाओंसे परवर्ती कवियोंको बड़ी प्रेरणा मिली और उन्होंने भी विविध कालों एवं विविध भाषाओंमें एतद्विषयक अनेक रचनाएँ लिखीं, जिनमेंसे माणिक्यचन्द्र ( १३ वीं सदी), भावदेवसूरि ( वि० सं० १३५५ ), असवाल ( १५ वीं सदी), भट्टारक सकलकीर्ति, ( वि० सं० १५ वीं सदी), कवि रघू, (वि० सं० १५-१६ वीं सदी), कवि पद्मसुन्दर एवं हेमविजय", ( १६ वीं सदी ) एवं पण्डित भूधरदास २ (१८ वीं सदी ) प्रमुख हैं । पार्श्वनाथचरित सम्बन्धी उक्त रचनाओंकी परम्परामें हरयाणाके महाकवि विबुध श्रीधर कृत 'पासणाहचरिउ' का भी विशेष महत्व है किन्तु अद्यावधि वह अप्रकाशित रही है । प्रस्तुत निबन्धमें उसी पर कुछ प्रकाश डालनेका प्रयास किया जा रहा है। इसका कथानक यद्यपि परम्परा प्राप्त ही है किन्तु कथावस्तु गठन, भाषा, शैली, वर्णन प्रसंग, समकालीन संस्कृति एवं इतिहास सम्बन्धी सामग्रीकी दृष्टिसे यह रचना अद्वितीय सिद्ध होती है । उक्त 'पासणाहचरिउ' की एक प्रति आमेर - शास्त्र भण्डार, जयपुरमें सुरक्षित है, जिसमें कुल ९९ पत्र हैं । इन पत्रोंकी लम्बाई एवं चौड़ाई १०' x ४३” । उसके प्रत्येक पत्र में १२ पक्तियोंमें ३५-४० वर्ण हैं । इनका प्रतिलिपि काल वि० सं० १५७७ है । यह प्रति शुद्ध एवं स्पष्ट है । 13 कवि नाम निर्णय जैन साहित्य में लगभग आठ विबुध श्रीधरोंके नाम एवं उनकी लगभग उतनी ही कृतियाँ उपलब्ध होती हैं । यथा : १. पासणाहचरिउ, २. वढ्ढमाणचरिउ, ३. सुकुमालचरिउ, ४. भविसयत्तकहा, ५. भविसयत्तपंचमी चरिउ, ६. भविष्यदतपंचमीकथा, ७ विश्वलोचनकोश एवं ८ श्रुतावतारकथा । इनमें से १. निर्णयसागर प्रेस, बम्बईसे प्रकाशित, १९०९ २. माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला, बम्बईसे प्रकाशित, १९०९ ३. भारतीय संस्कृतिमें जैन धर्मका योगदान, पृ० १३५ ४. प्राकृत थैंक्स्ट सोसायटी, वाराणसीसे प्रकाशित, १९६५ ५- १२. रइधू साहित्यका आलोचनात्मक परिशीलन, वैशाली, १९७४ १३. आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुरकी ग्रन्थ सूचियाँ, भाग २ २२७ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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