Book Title: Vibhinn Jain Sampradayo me Manya Agam Author(s): Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 4
________________ . जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक ___ 10 नियुक्तियाँ १. आवश्यनियुक्ति २. दशवकालिकनियुक्ति ३. उत्तराध्ययननियुक्ति ४. आचारगनियुक्ति ५. सूत्रकतांगनियुक्ति ६. सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति ७. बृहत्कल्पनियुक्ति ८. व्यवहारनियुक्ति ९. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति १० . ऋषिभाषितनियुक्ति 9 अन्य ग्रन्थ १ यतिजीतकल्प २. श्राद्धजीतकल्प ३. पाक्षिकसूत्र ४. क्षमापनासुत्र ५. वन्दित्तु ६. तिथिप्रकरण ७. कवचप्रकरण ८. संसक्तनियुक्ति ९. विशेषावश्यकभाष्य दिगम्बर सम्प्रदाय माग्य आगम दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य ग्रन्थ हरिवंशपुराण एवं धवलाटीका में १२ अंगों एवं १४ अंगबाह्यों का उल्लेख है। अंगबारों में सर्वप्रथम सामायिक आदि छ: आवश्यकों का उल्लेख है, तत्पश्चात् दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पिकाकल्पिक, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक एवं निशीथ का उल्लेख है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार इनमें से अभी कोई भी आगम उपलब्ध नहीं है। इसलिए जिन आगगों को आगम की श्रेणी में रखते हैं, उनमें से प्रमुख नाम हैं१. षखण्डागम २. कषायप्राभूत ३. मूलाचार ४. भगवती आराधना ५. आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ-- समयसार, प्रवचनचार. पंचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड आदि। ६. अन्य ग्रन्थ . तिलोयपण्णत्ति (यतिवृषभ), अंगपणागत्ति, जम्बूद्वीप पण्णत्ति, गोम्मटसार, क्षपणसार एवं लोक विभाग। यापनीय सम्प्रदाय के मान्य आगम श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय के अतिरिक्त यापनीय सम्प्रदाय का भी एक सहस्र वर्ष की अवधि तक अस्तित्व रहा है। यह सम्प्रदाय श्वेताम्बरों के स्त्रीमुक्ति, केवलि भुक्ति आदि सिद्धान्तों को स्वीकार करने के रगथ मुनि की अचेलता को लेकर दिगम्बर परम्परा का अनुसरण करती है। इस सम्प्रदाय के साहित्य के अनुसार आचासंग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, कल्प, निशीथ, व्यवहार, आवश्यक आदि आगम मान्य थे। आगमों के विच्छेद होने की दिगम्बर मान्यता यापनीय संघ के आचार्यों को स्वीकार्य नहीं थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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