Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
विभिन्न जैन सम्प्रदायों में मान्य आगम
वर्तमान में जैन धर्म की प्रमुख चार सम्प्रदायें हैं दिगम्बर, श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक, स्थानकवासी एवं तेरापन्थ । इनमें श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के अनुसार ४५ अथवा ८४ आगम मान्य हैं। स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय ३२ आगमों को गान्यता देती है। दिगम्बर सम्प्रदाय इनमें से किसी भी आगम को मान्य नहीं करती, उसके अनुसार षट्खण्डागम, कसायपाहुड आदि ग्रन्थ ही आगम हैं। स्थानकवासी त तेरापंथ सम्प्रदायों द्वारा मान्य ३२ आगम
___ इन दोनों सम्प्रदायों में सम्प्रति ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेदसूत्र एवं १ आवश्यक सूत्र मिलाकर ३२ आगम स्वीकृत हैं। इनके हिन्दी एवं प्राकृत भाषा के नाम नीचे दिए जा रहे हैं। कोष्ठकवी नाम प्राकृतभाषा में हैं।
11 अंग १. आचारांग (आयारो) २. सूत्रकृतंग (सुयगडो) ३. स्थानांग (ठाणं) ४. समवायांग (समवाओ) ५. भगवती/ व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवई वियाहपण्णत्ती) ६. ज्ञानाधर्मकथा (णायाधम्मकहाओ) ७. उपसकदशा (उवासगदसाओ) ८. अन्तकद्दशा(अंतगडदसाओ) ९. अनुत्तरोपपातिकदशा(अनुत्तरोववाइयदसाओ) १० प्रश्नव्याकरण (पाहावागरणाई) ११ विपाकसूत्र (विवागसुयं) नोट- दृष्टिवाद नामक १२ वाँ अंग उपलब्ध नहीं है। इसका उल्लेख नन्दीसूत्र, समवायांग एवं स्थानांग सूत्र में मिलता है।
__12 उपांग १. औपपातिक (उववाइय) २. राजप्रश्नीय (रायपसेणइज्ज) ३. जीवाजीवाभिगम(जीवाजीवाभिगम) ४. प्रज्ञापना (पण्णवणा) ५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति(जम्बुद्दीवपण्णत्ती) ६. चन्द्रप्रज्ञप्ति (चंदपण्णत्ती) ७. सूर्यप्रज्ञप्ति (सूरपण्णनी) ८. निरयावलिका(निरयावलियाओ) ९. कल्पावनसिका (कावडंसिया)
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
OFA
a
na
[2
जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक १० पुष्पिका (पुफियाओ) ११.पुष्पचूलिका (पुप्फचूलाओ) १२. वृष्णिदशा (वपिहदसाओ)
4 मूलसूत्र १. उत्तराध्ययन (उत्तरज्झयणाई) २. टशवैकालिक (दसवेयालियं) ३. नन्दीसूत्र (नंदिसुत्त) ४. अनुयोगद्वार (अणुओगद्दाराई)
4 छेदसूत्र १. दशाश्रुतस्कन्ध (आयारदसाओ) २. बृहत्कल्प (कप्पं) ३. व्यवहार (ववहारं) ४. निशीथ सूत्र (निसीह) नोट- कल्पसूत्र और बृहत्कलप भिन्न हैं। कल्पसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध का ही एक भाग है, जो विकसित हुआ। बत्तीसवां सूत्र आवश्यक सूत्र (आवस्सयं) श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में मान्य ४५ आगम
इस सम्प्रदाय में सम्मिलित खरतरगच्छ, तपोगच्छ आदि सभी उपसम्प्रदायें ४५ आगम मान्य करती हैं। उन ४५ आगमों में ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूलसूत्र, ६ छेदसूत्र, १० प्रकीर्णक एवं २ चूलिका सूत्रों की गणना की जाती है।
11 अंग स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी अंग सूत्र।
12 उपांग स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी उपांग सूत्र ।
4 मूलसूत्र । मूलसूत्रों की संख्या एवं नामों के संबंध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एकरूपता नहीं है। प्रायः निम्नांकित ४ मूलसूत्र माने जाते हैं१. उत्तराध्ययन २. दशवैकालिक ३. आवश्यक ४. पिण्डनियुक्ति नोट- कुछ आचार्यों ने पिण्डनियुक्ति के साथ ओपनियुक्ति को भी मूलसूत्र में माना है एवं वे 'पिण्डनियुक्ति-ओघनियुक्ति' नाम देते हैं।
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
विभिन्न जैन सम्प्रदायों में मान्य आगम
6 छेदसूत्र
स्थानकवासी एवं तेरापंथ परम्परा में मान्य ४ छेदसूत्र तो समान ही
हैं, अन्य २ छेदसूत्र हैं
५. महानिशीथ (महानिसीह)
६ . जीतकल्प (जीयकप्प)
१. चतुःशरण (चउसरण)
२. आतुरप्रत्याख्यान (आउरपच्चक्खाण)
३. भक्तपरिज्ञा (भत्तपरिण्णा)
४. संस्तारक (संथारय)
५. तंदुलवैचारिक (तंडुलवेयालिय)
६. चन्द्रवेध्यक (चंद्रवेज्झय)
७. देवेन्द्रस्तव (देविंदत्थय)
८. गणिविद्या (गणिविज्जा)
९. महाप्रत्याख्यान (महापच्चक्खाण)
१०. वीरस्तव ( वीरत्थय)
नोट- कहीं कहीं पर वीरस्तव के स्थान पर इस गणना में मरणविधि का नाम
लिया जाता है।
2 चूलिका सूत्र
१. नन्दीसूत्र २. अनुयोगद्वार
८४ आगम (श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में मान्य) पूर्वोक्त ४५ आगम + २० अन्य प्रकीर्णक सूत्र + १० नियुक्तियाँ+ ९
अन्य ग्रन्थ
10 प्रकीर्णक सूत्र
=
८४ आगम ।
20 अन्य प्रकीर्णक ( उपर्युक्त 10 प्रकीर्णकों को मिलाकर 30
१. ऋषिभाषित
३. गच्छाचार
५. तित्थोगालिय ७. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति
९. अंगविद्या
११. सारावली
१३. पिण्डविशुद्धि
१५. योनिप्राभृत
१७. बंगचूलिका
१९. जम्बूपयन्ना
प्रकीर्णक मान्य) 1
२. अजीवकल्प
४. मरणसमाधि
६. आराधनापताका
८. ज्योतिष्करण्डक
१०. सिद्धप्राभृत
१२. जीवविभक्ति
१४. पर्यन्त-आराधना
१६. अंगचूलिका
१८. वृद्धचतुः शरण
२०. कल्पसूत्र
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
. जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक
___ 10 नियुक्तियाँ १. आवश्यनियुक्ति
२. दशवकालिकनियुक्ति ३. उत्तराध्ययननियुक्ति
४. आचारगनियुक्ति ५. सूत्रकतांगनियुक्ति
६. सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति ७. बृहत्कल्पनियुक्ति
८. व्यवहारनियुक्ति ९. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति १० . ऋषिभाषितनियुक्ति
9 अन्य ग्रन्थ १ यतिजीतकल्प
२. श्राद्धजीतकल्प ३. पाक्षिकसूत्र
४. क्षमापनासुत्र ५. वन्दित्तु
६. तिथिप्रकरण ७. कवचप्रकरण
८. संसक्तनियुक्ति ९. विशेषावश्यकभाष्य
दिगम्बर सम्प्रदाय माग्य आगम दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य ग्रन्थ हरिवंशपुराण एवं धवलाटीका में १२ अंगों एवं १४ अंगबाह्यों का उल्लेख है। अंगबारों में सर्वप्रथम सामायिक आदि छ: आवश्यकों का उल्लेख है, तत्पश्चात् दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पिकाकल्पिक, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक एवं निशीथ का उल्लेख है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार इनमें से अभी कोई भी
आगम उपलब्ध नहीं है। इसलिए जिन आगगों को आगम की श्रेणी में रखते हैं, उनमें से प्रमुख नाम हैं१. षखण्डागम
२. कषायप्राभूत ३. मूलाचार
४. भगवती आराधना ५. आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ-- समयसार, प्रवचनचार. पंचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड आदि। ६. अन्य ग्रन्थ . तिलोयपण्णत्ति (यतिवृषभ), अंगपणागत्ति, जम्बूद्वीप पण्णत्ति, गोम्मटसार, क्षपणसार एवं लोक विभाग।
यापनीय सम्प्रदाय के मान्य आगम श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय के अतिरिक्त यापनीय सम्प्रदाय का भी एक सहस्र वर्ष की अवधि तक अस्तित्व रहा है। यह सम्प्रदाय श्वेताम्बरों के स्त्रीमुक्ति, केवलि भुक्ति आदि सिद्धान्तों को स्वीकार करने के रगथ मुनि की अचेलता को लेकर दिगम्बर परम्परा का अनुसरण करती है।
इस सम्प्रदाय के साहित्य के अनुसार आचासंग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, कल्प, निशीथ, व्यवहार, आवश्यक आदि आगम मान्य थे। आगमों के विच्छेद होने की दिगम्बर मान्यता यापनीय संघ के आचार्यों को स्वीकार्य नहीं थी।
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________ विभिन्न जैन सम्प्रदायों में मान्य आगम ... 5. डॉ. सागरमल जैन ने 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' पुस्तक में षट्खण्डागम, कसायपाहुड, मूलाचार एवं भगवती आराधना को यापनीय सम्प्रदाय के ग्रन्थ सिद्ध किया है। वे इन्हें दिगम्बर ग्रन्थ नहीं मानकर यानीय ग्रन्थ मानते हैं। आगमों के संबंध में कतिपय बिन्दु * अर्थरूप प्ररूपण की दृष्टि से सभी तीर्थंकरों के आगम एक जैसे होते हैं, इस दृष्टि से आगमों को शाश्वत भी कहा जाता है, किन्तु शब्द की दृष्टि से प्रत्येक गोथंकर के काल में आगमों का ग्रथन या निर्माण किया जाना है। * वर्तमान में उपलब्ध अंग-आगम रणधर सुधर्मास्वामी द्वारा ग्रथित हैं, किन्तु उमांग, मूल, छेद आदि अंगबाह्य सूत्र स्थविर कृत हैं। स्मरणशक्ति में आयी शिथिलता के कारण इन आगमों की पाँच बार वाचनाएँ हुई। अन्तिम वाचना देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के समय वीर निर्वाण संवत् 98.8 में हुई। उन्होंने वाचना के अन्तर्गत आगमों का सर्नया नया लेखन नहीं किया, परन्तु पूर्व प्रचलित आगमों को ही लिपिबद्ध कराया। जहाँ आवश्यक था वहाँ सम्पादन भी किया। दिगम्बर परम्परा भले ही श्वेताम्बर आगमों को मान्य नहीं करती हो, किन्तु स्त्रीमुक्ति, केवलिभुक्ति आदि दो-चार बातों को छोड़कर श्वेताम्बरों एवं दिगम्बरों में कोई मतभेद नहीं है। इसी प्रकार श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों के साथ तेरापंथ एवं स्थानकवासियों का मूर्तिपूजा के बिन्दु के अतिरिक्त कोई विशेष मतभेद नहीं है। स्थानकवासियों एवं तेरापंथियों के तो आगम पूर्णत: समान हैं / इनमें जो मतभेद उभरकर आते हैं, वे व्याख्यागत मतभेद हैं। जैनदर्शन के सभी सम्प्रदायों में मूल दार्शनिक मान्यताओं में प्राय एकरूपता है. जो भेद है वह आचारगत भेद है। वह आचार सम्बन्धी भेद ही फिर दार्शनिक रूप से विकसित हुए हैं। + आगमों का अध्ययन सबके लिए समान रूप से उपादेय है। एक दूसरे की परम्परा के आगमों का अध्ययन करने से मिथ्यात्व नहीं लगता है। मिथ्यात्व तो दृष्टि में होता है, उससे बचना चाहिए। * आगमों में से भी जीवन-शोधक तत्त्वों को ग्रहण करने की दृष्टि रहनी चाहिए, उनमें आयी कतिपय बातों को छोड़कर परस्पर विवाद नहीं करना चाहिए। आगमों का अध्ययन तो जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत बनाता है.. * आगमों में संस्कृति, इतिहास, खगोल, भूगोल, दर्शन, साहित्य- शास्त्र, कला, मनोविज्ञान, प्राणिशास्त्र, वनस्पतिविज्ञान, भौतिक-शास्त्र आदि विविध विषयों की भी जानकारी मिलती है। -सम्पादक