Book Title: Vibhinn Jain Sampradayo me Manya Agam Author(s): Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 2
________________ OFA a na [2 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक १० पुष्पिका (पुफियाओ) ११.पुष्पचूलिका (पुप्फचूलाओ) १२. वृष्णिदशा (वपिहदसाओ) 4 मूलसूत्र १. उत्तराध्ययन (उत्तरज्झयणाई) २. टशवैकालिक (दसवेयालियं) ३. नन्दीसूत्र (नंदिसुत्त) ४. अनुयोगद्वार (अणुओगद्दाराई) 4 छेदसूत्र १. दशाश्रुतस्कन्ध (आयारदसाओ) २. बृहत्कल्प (कप्पं) ३. व्यवहार (ववहारं) ४. निशीथ सूत्र (निसीह) नोट- कल्पसूत्र और बृहत्कलप भिन्न हैं। कल्पसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध का ही एक भाग है, जो विकसित हुआ। बत्तीसवां सूत्र आवश्यक सूत्र (आवस्सयं) श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में मान्य ४५ आगम इस सम्प्रदाय में सम्मिलित खरतरगच्छ, तपोगच्छ आदि सभी उपसम्प्रदायें ४५ आगम मान्य करती हैं। उन ४५ आगमों में ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूलसूत्र, ६ छेदसूत्र, १० प्रकीर्णक एवं २ चूलिका सूत्रों की गणना की जाती है। 11 अंग स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी अंग सूत्र। 12 उपांग स्थानकवासी एवं तेरापंथ सम्प्रदाय द्वारा मान्य सभी उपांग सूत्र । 4 मूलसूत्र । मूलसूत्रों की संख्या एवं नामों के संबंध में श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एकरूपता नहीं है। प्रायः निम्नांकित ४ मूलसूत्र माने जाते हैं१. उत्तराध्ययन २. दशवैकालिक ३. आवश्यक ४. पिण्डनियुक्ति नोट- कुछ आचार्यों ने पिण्डनियुक्ति के साथ ओपनियुक्ति को भी मूलसूत्र में माना है एवं वे 'पिण्डनियुक्ति-ओघनियुक्ति' नाम देते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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