Book Title: Vastusara Prakarana
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 269
________________ रत्नपरीक्षा ( २३७ ) एगाइ जाव बारस चडंति गुंजिक्कि वज्जताणमिमं । वीसा य सोल तेरस गारस नव इगूण जाव दुगं ॥२६॥ . अस्यार्थ पुनयंत्रेणाह - | मोतीटंकप्रति १२ | १४ | १६ | २० | ३०, ४० | ५०/६० ७० | ८० / ९० १०० | रुप्यटंकण |४०/ ३५३० २४| १६ | ११ | ८ ६ ५ ४ | ३ २ | | हीरागुंजा २ | २ | ३ | ४ ५ ६ ७ ८ | ९ | १० | ११ | १२ | रुप्यटंकण |२० | १६ | १३ | ११ | ९ | ८ | ७ | ६ ५ । ४ | ३ २ | - अइचुक्खनिम्मला जे नेयं सव्वाण ताण मुल्लमिमं । सद्दोसे सयमंसं भमालए मुल्लुदसमंसं ॥२७॥ गोमेय फलिह भीसमकक्केय पुस्सरायवइडुज्जे । उक्किट्ठ पण छ टंका कणेयद्ध विद्रुमे मुल्लं ॥२८॥ इति सर्वेषां मूल्यानि समाप्तानि । - अथ वज्रादिरत्नानां स्थानस्वरूपाण्याह - वजं जहा हेमतसूरपारय कलिंग मायंग कोसल सुरट्ठा । पंडुरदेसो वेणुनइ वज्जउप्पत्तिठाणाई ॥२९॥ तंबसियनीलकुकुस-हरियालसरीसपुप्फघणरत्ता । इअवज्जवण्णछाया कमेण आगरविसेसाओ ॥३०॥ सिय विप्प रत्त खत्तिय नीलप्पह वइस सामसुद्दे य । चउवण्ण दुन्नि जाई चुक्खामालवि य नायव्वा ॥३॥ कागपयबिन्दुरेहा समला फुट्टा य एगसिंगा य । असुह स दोसा एए रम्मा अमला य वारितरा ॥३२॥ पउमरागं जहा - सिरिफलहि सावगंधिय कुरुबिंदय जा मणी चउजाई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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