Book Title: Vardhaman suri Shishya Sagarchandra Muni Virachit Uttarkalin Apbhramsa Bhashabaddha Neminath Ras Author(s): Ramnik Shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ आ. वर्धमानसूरि-शिष्य श्रीसागरचंद्र-मुनि विरचित उत्तरकालीन अपभ्रंश भाषा-बद्ध नेमिनाथ-रास संपा. रमणीक शाह ला. द. विद्यामंदिर स्थित उजमबाई भंडारनी १७७४ नंबरनी ताडपत्रीय हस्तप्रत पर थी वीशेक वर्ष पहेलां प्रस्तुत रासनी नकल में करेली. ३५ से.मी. x ४/ से.मी. मापनी आ हस्तप्रतमां पत्र ३७ थी ४२मां आ रास लखायेल छे. रासनो शरूआतनो केटलोक अंश खूटे छे, कारण प्रतमां पत्र ३७K नथी. प्रतमां बीजी रचनाओ साथे प्रस्तुत रचना ६ट्ठा क्रमे संग्रहायेली छे. अंतिम २ पंक्तिओमां कर्ताए पोतानो परिचय नागिलकुलना आ. वर्धमानसूरिना शिष्य तरीके आप्यो छे. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास (पृ. २५४-५५)मां मो.द.देसाईए 'गणरत्नमहोदधि'ना कर्ता वर्धमानसूरि विशे लखतां 'गणरत्नमहोदधि'मां पंडित सागरचंद्रना रचेला केटलाक संस्कृत श्लोकोनो उल्लेख को छे. आ सागरचंद्रज 'नेमिनाथ रास'ना कर्ता होवा संभव छे. 'गणरत्न महोदधि' नुं रचनावर्ष सं. ११९७ छे. आ जोतां सागरचंद्र ने विक्रमीय १२मी सदीना उत्तरार्धमा मूकी शकाय. साहित्यिक दृष्टिए कृति सामान्य छे, पण भाषा दृष्टिए तेनुं मूल्य छे. उत्तरकालीन अपभ्रंशनी आ कृतिमां प्राचीन गूर्जर भाषानी अनेक विशेषताओ नजरे पडे छे. अद्यावधि अप्रकाशित होवाथी अहीं एक ज हस्प्रतना आधारे संशोधित करी प्रगट करी छे. पयोना सळंग अंको संपादके मूक्या छे. मूळना अशुद्ध पाठो टिप्पणमां नोंध्या छे. -x-xसागरचंद-मूणि-रइड ___णेमिणाह-रासु (३८/१) तं निसुणेविणु चिंतियं, जे आउहपालिं जंपियं । कि एहु संपइ वासुदेउ, जसु एत्तिउ बलु संवरु अजिउ । रोस-महा-भर-पूरियउ, आकंठ-पमाण-सरोसियउ । रत्तारुण-- [किं सुय आणणउ, तंबारुण - नयण भयावणउ । मन अशद्ध पाठ ७. रतारण - सुप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8