Book Title: Vanaspatiyo ke Swalekh
Author(s): Jagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
Publisher: Hindi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ प्रकाशक की ओर से खेतों, बाग-बगीचों और जलाशयों में उगने वाले विविध प्रकार के पेड़-पौधे 'अपनी मनोमुग्धकारी हरितिमा और चित्ताकर्षक रंग-बिरंगे फूलों से जहाँ धरती को अतुलनीय और अप्रतिम सौन्दर्य प्रदान करते रहते हैं, वहीं वे मनुष्य के नित्यप्रति के जीवन में बड़े ही उपयोगी और जागरूक सिद्ध होते आये हैं। उनके सहज साहचर्य में मनुष्य असीमित सुख और सन्तोष का अनुभव करता आया है। किन्तु अपने इन गतिहीन मूक साथियों के सम्बन्ध में उसके सोचने और समझने के दृष्टिकोण में वस्तुतः एक प्रकार को जड़वत् उदासीनता ही रही है। कारण, यद्यपि पेड़-पौधों के उत्पत्ति, वृद्धि और मृत्यु-सम्बन्धी बाह्य व्यापारों को मनुष्य की आँखें देखने में समर्थ रही हैं, तथापि आँधी और धूप, जाड़ा और गर्मी, वृष्टि और अनावृष्टि से पड़ने वाले उनके आन्तरिक प्रभावों को देखने और समझने में वह सदैव ही असमर्थ रहा है। वैज्ञानिक अनुसन्धानों और सूक्ष्म संपरीक्षणों से सिद्ध हो चुका है कि धरती पर फैली हुई विविध वनस्पतियों में जीवन की अजस्र धारा उसी प्रकार प्रवहमान है जिस प्रकार अन्य गतिशील प्राणियों में / अन्तर केवल इतना ही है कि विभिन्न आघातों और प्रतिवातों के प्रति प्राणियों में होने वाली प्रतिक्रियाओं से सहज तादात्म्य स्थापित किया जा सकता है, जब कि वनस्पति के भीतर ये प्रतिक्रियाएं अगोचर रूप.से घटित होती रहती हैं। भारत के महान वैज्ञानिक आचार्य जगदीशचन्द्र वसु ने सिद्ध किया है कि वनस्पति भी जीवन से पूर्ण अनुप्राणित है। वह भी अन्य प्राणियों की भाँति सोती और जागती है; अपने ऊपर पड़ने वाले आघातों का अनुभव करती है; शुद्ध, स्वच्छ और सरस पर्यावरण में स्वस्थ और प्रसन्नचित्त रहती है तथा दूषित और अस्वास्थ्यकर वातावरण में रोगग्रस्त होकर मृतप्राय हो जाती है। विष और अन्य सभी

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 236