Book Title: Vakya Rachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 8
________________ सात परिशिष्ट ५ में १२५ धातुओं को उपसर्ग से होने वाला अर्थ परिवर्तन के साथ दिया गया है। परिशिष्ट ६ में एक अर्थ में होने वाली अनेक धातुओं को अकारादि क्रम से दिया गया है। परिशिष्ट २, ३ और ४ में प्रयुक्त धातुओं को संस्कृत और हिन्दी अर्थ सहित अकारादि क्रम से "अकारादि धातुओं की अनुक्रमणिका' के नाम से दी गई है। वह परिशिष्ट २ से पहले है। अन्त में दृष्टिदोष और प्रेसदोष की अशुद्धियों के लिए शुद्धिपत्र है। इस प्रकार वाक्यरचना के लिए पर्याप्त सामग्री इस पुस्तक में है। ___ दो वर्ष पूर्व आचार्यश्री तुलसी ने मुझे (मुनि विमल कुमार को) 'वाक्य रचना' के संपादन का आदेश देते हुए कहा-उसकी हस्तलिखित प्रति खोजकर संपादन करो। उसकी एक प्रति लेकर जब मैंने दिखाई तो आपने कहा-मूल प्रति खोजो। संघपरामर्शक मुनिश्री मधुकरजी ने मूल प्रति खोजकर मुझे दी। मूल प्रति की प्राप्ति पर आचार्य श्री ने प्रसन्नता व्यक्त की। मैंने आचार्य श्री के आदेश को युवाचार्य श्री से निवेदन किया। उन्होंने भी सहमति व्यक्त की। ४-५ मास में संपादन कर मैंने युवाचार्य श्री को दिखाया। संशोधन के लिए आपने मुनिश्री श्रीचन्दजी का नाम सुझाया। फिर हम दोनों ने यथाशक्ति संपादन किया जिसका फलित रूप यह पुस्तक है । युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी प्रेरणा देते हैं, मार्ग दर्शन देते हैं और गति भी देते हैं। आपकी दृष्टि में सृष्टि है। आपने प्रेरणा दी उसी की परिणति यह पुस्तक है। श्रद्धापूरितमानस से वंदन कर हम यही मांगते हैं कि आप समय-समय पर प्रेरणा देते रहें। युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ ने हमारी परीक्षा ली है, जो अक्षर बोध हमने सीखा था। परीक्षा-परीक्षा ही होती है । सरल दीखने वाला प्रश्न भी कभीकभी परीक्षक की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। हमने परीक्षा दी है। उत्तीर्णता आपके हाथ में है। युवाचार्य श्री समय-समय पर कार्य की प्रगति की जानकारी लेकर हमारी गतिशीलता में त्वरता भर देते । किन शब्दों में हम आपकी कृतज्ञता ज्ञापित करें। शब्दों की सीमित शक्ति कृतज्ञता का स्पर्श मात्र करती है। सभक्ति वंदन कर हम आप से यही चाहते हैं कि ऐसी परीक्षा बार-बार हो, जिससे ज्ञान को खोलने का अवसर मिले और शक्ति का उपयोग हो। हम कृतज्ञ हैं मुनिश्री दुलहराजजी के जिन्होंने संपादन में हमारा सहयोग किया और अमूल्य सुझाव भी दिए। हम आभारी हैं संघपरामर्शक मुनिश्री मधुकरजी के जिन्होंने मूल प्रति प्राप्त कराई और समय-समय पर आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई। मुनिश्री हीरालालजी और मुनिश्री विनयकुमार जी के भी हम आभारी हैं जिन्होंने हमारे प्रतिदिन के कार्य में हाथ बंटाकर हमारा सहयोग किया। गवर्नमेण्ट संस्कृत कॉलेज बीकानेर के पूर्व प्राचार्य पं० विश्वनाथ मिश्र ने

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