Book Title: Vachak Yashovijay Rachit Samudra Vahan Samvad Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 5
________________ ANUA (१४) टूहा : सवलो सघलो ढाल १६ : वाहणथी वाहणनी फिरत अंबर अंबर फिरत फिरती कीरति ११ -१ पवनहींथे पवनहीं थई प्रतिमा – मार्नु व्यवहारीतणां हो एवा पाठ लखेल छ, पछी पोते ज मार्जिनमा मान जिहाजना लोकना हो एम उमेर्यु छे. चोपाइ चोपड़ तिहां सोहे सोहइ तिहां मावू मार्नु १०-१ केसर छवि अनि केसर छवि अनि १४-३ वसाणा वसाणे (१५) ढाल १७: ४-४ केसर वचि केसर छवि हरख न माइ न हरख माइ ५कर्या धरिया १०-२ मेहलि मेल्ही ११-१ वाज्यां वाजा वाजा वागा हुआ वधामणां हुआं हो वधामणां १५-२ आंगी अंगी वळिक कलस. वली कनक कलस विधु मुनि संवत "मुनि विधु संवत १९-३ पहलां कवि जसविजयई ए रच्या एम लखेल छ, पछी स्वयं मार्जिनमा घोघा बंदिरि ए रच्यो उमेर्यु छ.. नोंध :-- मदित प्रतिमां दरेक ढालना मथाले अलग अलग “देशी नी पंक्ति छे. ज्यारे कांनी प्रतिमां ढाल १, ६ (मात्र ढाल लो नी एटलं ज), ७, ९, १३, १४ (मात्र समरिओ साद दिई ए देव ए देसी एटलं ज), १५, १६, १७ (मात्र गछपति राजिओ हो लाल एटलं ज), ए नत्र ढालामा ज ते जोवा मळे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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