Book Title: Vachak Yashovijay Rachit Samudra Vahan Samvad
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ ११ -१ उसरी ओसरी खालतो बाळतो बालता गालतो फेरवे फोरवड़ भोग योग (१०) दूहा : कखि ढाल ११ : कृष भचके भकइ नीति ऋजुमार्ग तें नीतिमार्ग ते तिं सबल सयल छकोलइ पाठीन बोले बोली झकोले पाडीन (११) ढाल १२:४-३ १०-१ (१२) दूहा : लहइ रूसो परि रूसो पर शोकनी परि नीत शाकिनि परि निति ऊगरस्य तो पंक ऊगरस्यइ पंक वृथा यथा पिटि पिट्टि विंध्य वंध्य विंध्याचल बंध चल वनने कुंज वननिकुंज भोलिडा रे हंसा रे भोलूडा रे हंसा देखो देखी ते उत्पत्ति रे ते उत्पातिं रे A. ढाल १३: (१३) दूहा : १-४ तालक्ख नालक्ख ३-४ ९-३ मूकने करे सागरस्यु फिरिअ पाओ मुंझइ करि समुद्रस्यु फिरि नौंपाउं ढाल १४; [४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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