Book Title: Uttaradhyayanasutra Curni
Author(s): Devvachak, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 14
________________ ठिा पूयादि श्रीउत्तराय दोवि फेडियाओ सेसाओ अणाणुपुब्बीओ भण्णंति, इमाउ पत्थारगाहाओ-एगादी उत्तरिवड्डिताण ठाणाण इच्छियाणं तु । आनु चूणों । जो जो आदी य भवे सो सोतु अणंतरो णेओ॥१॥ जहियं त णिक्खेवो(जहियमि उ णिक्खित्ते) पुणरवि सो चेव होइ निक्लेवो । १ विनया सो होइ समयभेदो वज्जेयध्वो ततो नियमा ॥२॥ पुवाणुपुब्बि हेट्ठा समयाभेदेणऽणतरो देयो । उवरिमतुल्लं पुरतो हस्सो में ध्ययने हस्सादि तो सेसो ॥३॥ असती अणंतरस्स उ देयोऽणंतर अणंतरो तत्तो। तत्तोऽवि परतरो पुण ता जाव अणंतरो णस्थि ॥४॥ एवं तिसु हाणेसु पत्थारं दसइ १२३ , एस पुन्वाणुपुन्वी, तत्थेगस्स अणंतरो णस्थि, दुण्हणतरो एको तत्तो. दुण्डं हेट्ठा एकं ठावेऊण || उवरिमतुल्लं ठवेति तिण्हं हेट्ठा तिन्नि निक्ख आदीय बेण्णि से, जाता २१३, ततियपरिवाडीए (दोण्हमणंतरो एको, तं जति ठवेति समयभेदो भवति, एकस्साणतरो णस्थिति तिहमणतरो दुगो दिज्जद, एगं तिगं च आईए, जातं १३२, चउत्थपरिजवाडीए) एकस्सऽणंतरो दुगो तं जति ठवेति समयभेदो भवति, तो अणंतराणंतरं ठवेति एक, उपरिमतुल्लं दो दोण्हं हेट्ठा Aठवेज्जाऽऽईए तिमि ठवेति, जातं ३१२, पंचमपरिवाडिए तिण्हाणतरे दो तं जति ठवेति तो समयभेदो भवति, अणंतरा गंतरो एको तेणवि समयभेदो भवति, तओ तिण्हं हेट्ठा ण ठवेति, एगस्साणंतरो णत्थि तत्थवि ण ठवेति, दोण्हाणतरो एक्को | ततो दोण्हं हिट्ठा एक्कं ठवेति, आदीए हस्सत्ति वे तिण्णि य, जातं२३१, छट्ठपरिवाडीए दोण्हाणंतरो एको, तेण समयभेदो भवति, ॥१०॥ तो तीण्णाणतरो दो तं ठवेति, उवरिमं तुल्लं नसे इकं, आदीए ठवे तिन्नि, जाता पच्छाणुपुव्वी ३२१, एवं तिसु चचारि अणाणुपुवीओ, एवं सेसावि पवित्थारा नेया । इह यद्वत्थुनो अभिधानं जातिरूपादिपर्यायप्रभेदानुसरणस्वभावं तमाम नमनं प्रहित्वमिति, वस्तु नमनात-प्रतिवस्तु नमनात् भवनादित्यर्थः, तच्च दशप्रभेदमेकनामादि बहुभेदं वाऽमिलाप्यविषयत्वात् ।

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