Book Title: Uttaradhyayan Sutra
Author(s): Bhavvijay Gani
Publisher: Divya Darshan Trust
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उत्तराध्ययन
लाभालाभे सुद्दे दुक्खे .... १९-९० | वणरसङ्काय महगओ
लेझयण पवक्खामि
३४-१ ११-८
३४-५८
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३४-५९ वण्णओ परिणया जे उ....... १६-१७ पण्णभो पीअप जे १६-१७१ षण्णओ छोहिए जे उ ३६ - १८१ घण्णओ सुकिले जे उ ३६ - १५८ वरुणालक्खणो कालो ३६-२१५ वरवारुणी व रसो २६-९८ परि मे अप्पा दंतो
सासु छ कापस साहिं समाहिं साहिं समाहिं बोगदे से स
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लोगस्स एगदेसम्मि
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लोहणी हुअ थीइ अ
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बसु इंदियाथे बारिसहसंघयणो विधि कम्मुणो हे
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वलयलया पबगा कुहणा
३१-७
२२-६ १ - १३ ६-१५
घसे गुरुकुले णिचं वहणे बहमाणस्स बिवित्तसेज्जासण अंतिआणं विसएस अरजंतो विदूरमोगाडे २४-१८ जिसपे सबओ पारे जिमि सर काप ३६ - १८६ विसालिसेहिं सीलेहिं जहि जोग ८-१ | विसं पिवत्ता जह काल fineपकली अ बोभवा ३१-१८७ पीसं तु सागराई विसे अधोइए णिचं १-४४ बुदि सिणेहमप्पणो विसेण ताणं न सभे पमन्ते अण बेआवचे १९-६५ बेअणिअं पि न दुविहं विदंसहिं जाहिं चिभूसं परिवजिया | वेआ अहीआ न भवति ताणं १६-९ बिरई अभवेरस्स १९-२८ वेणं च मुहं दहि विरजमाणरस य इंदिपस्था १२-१०६ बेमायचे निउण विवायं च उदीरेह १७- १२ वेएज निजरापेही विवित्सलपणाणि भजाई २१-२२ बेमाणिभा उ जे देवा
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४-५
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२६-११४ सद्दे विरतो मणुओ विसोगो .... २१-१७ सहेसु जो गिद्धमुबेर ति १९८८ सधवारजोओ ३६ - १६२ सद्धं च नगरं किच्चा ३६-२६५ स नाणनाणोवगए महेसी २० - २० सन्निहिं च न कुविजा १-४८ स पुज्जसरथे सुबिणीय संसद ३२-३६ स पुत्रमेवं न लभेज्ज पच्छा ३२-४० समएवि संतई पप्प ३२- ४५ ३२- ४१ १५-१४ २२-४२
समणा मु एगे वयमाणा
१६ - १० | समया सबभूएसु
सत्तरस सागराऊ
स अ इइ के से ससेब सहरसाई
सत्तेव सागराऊ सत्थग्गहणं विसभक्खर्ण.... सरर्थ जहा परमतिक सदेवगंध मणुस्स सहस्स सोअं गहणं वयंति सद्दानुगासाणुगए अ जीवे सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं सद्दाशुषाए ण परिग्गहेण सहा विविहा भवंति लोए सद्दे अति अपरिग्गहे अ सद्दे रुवे अ गंधे अ
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वण्णओ गंधओ चेव बण्णओ जे भवे किन्हे वण्णओ जे भवे नीले
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समणो अहं संजो बंभवारी
समणं संजयं दंतं समयाए समणो होइ
१०-९ | बाइआ संगहिआ चेष २६-१५ वाकायमइगओ १६- २२ वारण हीरमार्णमि ३६-२३ वासु वा रत्यासु व ३६ - १६ बाणार सीए बहिआ २६-२५ दायणा पुच्छणा श्रेष २६-२४ वा विविहं समिच छोए २६-२६ बालुआकवले चेष २८ - १० ३४-१४
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वासाई बारसेव उ वासुदेवो य णं भणइ
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१-१६
२६-९५ विमरिज लाइ
११- १४
२७-२
३२-१२
स.
२५-१४
२६-१० सर्णकुमारो मधुसिदो २- १७ सण्णाइपिंडं जेमेह २६-२०७ सत्तरस सागराई २२-४७ | समरेसु अगारेसु
सभागवा बहू तथ समावण्णा न संसारे
३२ ३७ २८-१२ ९-२० २१ - २३ ६- १६ १-४७
४-९
३६-९
८-७
१२-९
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२- २७ २५- ३१ १९- २५
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विभाणिआ दुक्खविषणं | विगहाक साय सण्णाणं |वेमायाहिं सिक्खाहिं
१९-९
के कसमायारे
१५-१२ यंतासी पुरिसो रा १-१४
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समुद्दगंभीरसमा० समुआणं डंडमेसिज्जा समुबहि तर्हि संत समं च संघर्ष थीहिं सम्मतं चैव मिच्छतं सम्ममाणे पाणाणि सम्म सणरत्ता सम्म धम्मं विभणित्ता
सयणासण ठाणे वा
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२०-४४ सई च ज मुखिया २०-१२ ३६-२२९ सकम्भसेसेण पुराकएणं १४-२ १०-२८ स खुदीसह तवोविसेसो १२-१७ २६-१३ सगरोवि सागरं सच्चसोअप्पगडा सच्चा तहेव मोसा य
१८-३५ ११-२
३३-७ १४- १२
२४-२०
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२७-१४
१०-८
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९-१०
३०-१८
२५-३
२०-२४
१५-१५
१९-३७
१६-१३२
२२-२५.
समिखं पंडिए तम्हा
समिईहिं मज्झं सुसमाहियस्स
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.... ३-२
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२२-११
१२-१०
१९ ९८
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११-६
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७-२०
३४-२५
१४-३८
२४-२२
१८-३७
१७-१९
३६-२२६
१-२६
२३-१९
६-२ १२-१७
११-३१
१५-१६
२५-१
१६-१
३३-९
१७-१
३६-२५६
१४-५०
३०-३६

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