Book Title: Updhan Vidhi
Author(s): Kunvarji Anandji
Publisher: Kunvarji Anandji

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Page 36
________________ देवडा भास ॥ गाय गंधरप जिनगुणरास ॥साहमिणीने घो तंबोल । इम रातीजगे रंगरोल ॥३॥ इणीपरे ए माल जगावो॥ नेजां निशाण मंगावो ॥ पंच शब्द ढोल सरणाई ॥ सांबेला सबळ सजाई ॥४॥ कुंअरी शिर खुप भरीजे ॥ इंद्राणी शिजगारीजे ॥ जिनशासन सोह चढावो ॥ जगे बोधवीज इम वावो ॥५॥ गयवर शिर ठवीए माळ ॥ मार्गे दीयो दान रसाळ ॥ इणीपरे संघ साजन साथे ॥ माळ आणी दीओ गुरुहाथे ॥६॥ गुरुराय ठवे तिहां वास ॥ श्रावक मन अतिहो उल्लास ॥ जेहने माला कंठे ठवीजे ॥ मणिमय भूषण तस दीजे ॥७॥ अंगपूजा प्रभावना कीजे ॥ व्रतधारी पहेरामणी दीजे।। पाठां पुस्तक ने रुमाल | गुरुभक्ति करो सुविशाल ॥८॥ हवे शक्रस्तव उपधान ॥ पांत्रीश दिवस तस मान ॥ उपवास साडीउगणीश ॥ वायणा त्रण अतिही जगीश ॥९॥ हवे अठावीसह जेह ॥ उपधान लोगस्सनुं तेह ॥ साडापनर उपवास ॥ वायणा त्रण लीलविलास ॥१०॥ इणिपरे ए छउपधान ॥ श्रावक श्राविका थाओ सावधान ॥ वही सफल करो अवतार ॥ संसारतणो लहो पार ॥ ११ ॥ कलश. श्री वीरजिनेश्वर उपधानविधि इम भविक हितहेते कह।। महानिशिथसिद्धांतमाहे मुलभवोधी सद्दहे ॥ आराधीए उप

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