Book Title: Updhan Vidhi
Author(s): Kunvarji Anandji
Publisher: Kunvarji Anandji
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पोसो लीजे ॥ चोथ एकंतर एक एकासणु, पापपडल सपी छीजे ॥ ४ ॥ ए बेहु उपधानमें, मांडी नांद मंडाण ॥ पूजा परभावना, उच्छव करो सुजाण ॥ किरिया सवि सुधी, साधुनी रहेणी रहीए ॥ देहरे देव वांदो, सुमति गुपति निरवहीए ॥५॥ सुमति गुपति सुपरेआराधो चैत्यवंदन न विसारो॥ दोयसहस नवकार गणोने, पोरसी भणी संथारो ॥६॥ पांचे उपवासे, पहेली वायण होय ॥ तप पूरे बीजी, गुरुमुख लीजे सोय ॥ एटुं जो छंडे, तो तस दिहाडो वाधे ॥ तिम मुहपति पाडे, जो सोधतां नवी लाधे ॥७॥तिम अकाल सजाइ वमने, दिहाडो लेखे नावे । जीवघात विकथा हास्यादिक, तो आलोयण आवे ॥८॥ अरिहंतचेईयाणं, चोकीयु तस उपधान । उपवास ने आंबिल, चार दिवसनु मान ॥ उपवास अढी जव, तप संपूरण थाय॥वायणा तव लोजे, पामी सुगुरुपसाय ॥९॥ मुगुरुपसाये छकीयुं वहीए, सात दिवस परिमाण ॥ बे उपवासे पुख्खरवरदी, अढीए सिद्धाण बुद्धाणं ॥ १०॥
(ढाल २ जी-देशी उधारनी.) भाइ हवे माळ पहेरावो॥ साहमी साहमिणने नोतरावो॥ भला भोजन भक्ति करावो । रुपानी रकेवी घडावो ॥१॥ माहे मेवा मीगइ भरीए। हीरागल कमखा धरीए ॥चतुराइनी चाल म चूको ।। मांहे रुपानाणुं मूको ॥ २ ॥ चार पोहोर

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