Book Title: Updesh Chintamani Satik Part 02
Author(s): Jayshekharsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org निःस्वेति । तैर्दासी दिवानिशं ॥ कारि कर्म मध्याह्ने । यथा तद्वाप्यजोजि च ॥ १० ॥ कल्पवलीषु क.कंधु - मरालीविव वायसी ॥ घनश्रीकासु निःश्रीका। ददृशे सोदरीषु सा ॥ १ ॥ पितुस्ता दिव्यवस्त्राणि । चाहादनुले निरे ॥ लेने चात्रियपत्नी तु । वराशिम कष्टतः ॥ २० ॥ बंधुनिः सह भूत्वा ताः । प्राप्यंत श्वशुरालयं ॥ दीना केनापि सार्थेन। प्राहीयत चरितुदा ॥ २१ ॥ द्रव्यप्राणपरित्यागे । सा प्राप्ता पितृमंदिरं ॥ युक्तं दुःखाग्निना दा| ले तदद्भुतं ॥ २२ ॥ पितृधिकारदावोष्म - तप्ता बाष्पायतेस्म सा ॥ ईला मिलि. मेघांबु-रित्र संजमुखी प्रियं ॥ २३ ॥ अस्थानश्णवक्तुमशक्ता पितृहीलनं ॥ जनिबंधतः पृष्टा । कथंचन जगाद सा ॥ २४ ॥ ततो दध्यौ स वाडियो । माक्प्रोज्ज्वल T उप० चिंता०| 299 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ लोके श्रीरेव गौरव्या । न कुलं न कला अपि ॥ २५ ॥ अस्तां यदखिल श्रीमानरः स्याङ्गतः यः ॥ काष्टं श्रीखंकनामापि । पश्य कस्य न बलजं ॥ २६ ॥ साक्ष तेऽपि सुतोऽपि । रूपवानपि रूपकः ॥ न दिजाति यथा द्रव्य - हीनतद्वत्पुमाननि ॥ २७ ॥ पंकि at arrest | क्षारः कुग्राहजुरपि ॥ कैः सादरैर्न सेव्येत । श्रीतात इति सागरः ॥ For Private and Personal Use Only

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