Book Title: Upasakadasanga Sutra
Author(s): Sudharmaswami, Somji Rishi
Publisher: Surat

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Page 197
________________ नई कुटंब न विषघापी नई यावत् श्रमण सगवंत || माहावीरनी॥ | समीपनो धर्मकादियंते । पुत्तं कडं बेहावे ईश्ता जाव समासव | महावीरस्म तियंधम्मपण || चांगी कार करी नई |]] विचरइंबई|| यावत्। वासवरसनीश्रावकनी पत्लोविक गदिमां ज्या पाली शेष त्रिं नवसंपजित्ताविहरति जावदी संवासा परियागंना रुगवे ननेंविषरं | अपना | मादाविदेद् क्षेत्र नईविषरं | मुक्ति जास्परं । समाप्त / ] उपास गट्यांगस्प नवमं । चिमाणे उदवाय महाविदेदे वा से सिशिद्धित्ति निवेदन वा सगदशा न ॥ अध्ययनं नंदल पियस्प संली | हवदेश अध्ययन पारंजी ) इम) निश्वई हे जंबु | तेकाल | वमंशयणं समत्तं॥ बः॥ दशमस्म उरखे व जे एवं श्वस्तु जंबु | तेणं का समान | सावळी नगरीन | कोहनांमि उद्यां | जिसस चुनामराजा || तिदां सावळी नगरी में विषदं |लेश सावजीनयरी को एचेश्ए | जियस चुराया तच सावजी एनयरीए इंबई नवनषेड

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