Book Title: Upadhyaya Pad swarup aur Darshan
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 5
________________ उपाध्याय पद : स्वरूप और दर्शन 283 करणगुण आवश्यकता उपस्थित होने पर जिस आचार विधि का पालन किया जाता है, वह आचार-विषयक नियम करण युग कहलाता है। चरणगुण चरणगुण का अर्थ है-प्रतिदिन और प्रतिसमय पालन करने योग्य गुण / श्रमण द्वारा निरन्तर पालन किया जाने वाला आचार चरणगुण कहलाता है। पच्चीस गुणों की दूसरी गणना इस प्रकार है-- 1-12. अंगों का पूरा रहस्य ज्ञाता हो। 13. करणगुण सम्पन्न हो।' 14. चरणगुण सम्पन्न हो। 15-22. आठ प्रकार की प्रभावनाओं से युक्त हो। 23. मनोयोग को वश में करने वाला हो। 24. वचनयोग को वश में करने वाला हो। 25. काययोग को वश में करने वाला हो। उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है--जैन-श्रमणपरम्परा में उपाध्याय का कितना अधिक गौरवपूर्ण स्थान है और उनकी कितनी आवश्यकता है / उपाध्याय ज्ञान रूपी दिव्य-दीप को संघ में प्रज्वलित रखकर श्रुत-परम्परा को आगे से आगे बढ़ाते हैं। 1. करणसत्तरी-इसके सत्तर बोल हैं पिंडविसोही समिई भावणा पडिमा य इंदियनिग्गहो। पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहं चेव करणं तु॥ --प्रवचनसारोद्धार, द्वार 68, गाथा 596 2. चरणसत्तरी के सत्तर बोल हैं वय समणधम्म संजम वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तव कोहनिग्गहाइहं चरणमेयं // . -धर्मसंग्रह-३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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