Book Title: Upadhyay ka Swarup evam Mahima
Author(s): Chandmal Karnavat
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 2
________________ || 10 जनवरी 2011 | | जिनवाणी | शिक्षित, जिनस्थित आदि 16 विशेषण दिए गए हैं। सूत्र पाठों को अक्षुण्ण एवं अपरिवर्त्य बनाए रखने के लिए उपाध्याय को सूत्र वाचना देने में कितना जागरुक एवं प्रयत्नशील रहना होता था, यह अनुयोगद्वार सूत्र कथित 16 विशेषणों से सुस्पष्ट है। आगम पाठों को यथावत् बनाए रखने के लिए जहाँ इतने उपाय प्रचलित थे, वहाँ आगमों का मूल स्वरूप क्यों नहीं अव्याहत एवं अपरिवर्तित रहता। मूलपाठों को परम्परा रूप से शुद्ध स्पष्ट बनाए रखने हेतु अर्थ के साथ उनके मूल उच्चारण, भाषायी गुणों की सुरक्षा उपाध्याय का महनीय दायित्व कितना कठिन एवं महत्त्वपूर्ण है। क्या उपाध्याय की यह भूमिका मूलरूप में आज भी सुरक्षित है अब जिनागमों का ज्ञान गुरुशिष्य परम्परा से मौखिक नहीं रहा, अब तो जिनागम लिपिबद्ध ही नहीं मुद्रित भी हो चुके हैं? उपाध्याय का स्वरूप- उपाध्याय के सामान्य स्वरूप का निरूपण किया जा चुका है। अब उपाध्याय पद के स्वरूप का विशेष वर्णन किया जा रहा है। उपाध्याय 25 गुणों से युक्त होते हैं। वे 11 अंग 12 उपांग सूत्र तथा चरण सत्तरी एवं करण सत्तरी के धारक होने से उपाध्याय 25 गुणों के धारी होते हैं। अन्य प्रकार से 12 अंग (द्वादशांगी) के पाठक 13-14 चरणसत्तरी एवं करणसत्तरी के गुणों से युक्त 15-22 आठ प्रकार की प्रभावना से प्रभावक 23-25 तीनों योगों को वश में करने वाले। इन 25 गुणों के धारक बताए गए हैं। इनका उल्लेख भगवती सूत्र की पूर्वोक्त गाथा बारस्संगो जिणक्खाओ के अनुसार किया गया है। चरणसत्तरी- चरणसत्तरी में निहित 70 गुणों का उल्लेख निम्न प्रकार बताया गया है- चरणसत्तरी में चरण का अर्थ है चारित्र। नित्य क्रिया जिसका निरंतर पालन किया जाता है वे चरणगुण कहलाते हैं। उसके 70 भेद हैं- 5 महाव्रत, 10 प्रकार का खंति आदि यति धर्म, 17 प्रकार का संयम, 10 प्रकार का वैयावृत्त्य, 9 बाड़सहित ब्रह्मचर्य, 3 ज्ञानादिरत्नत्रय, 12 प्रकार का तप, 4 क्रोधादि चतुष्टय का निग्रह।' करणसत्तरी-करण का अर्थ है नैमित्तिक क्रिया। जिस अवसर पर जो करणीय हो। चरण नित्यक्रिया को बताया गया है जब कि करण नैमित्तिक क्रिया है। करणसत्तरी के 70 भेद हैं- 4 पिण्डविशुद्धि (आहार, वस्त्र, पात्र और स्थान निर्दोष भोगना) अनित्यादि 12 भावना, पाँच समिति, 12 पडिमा, 5 इन्द्रियनिग्रह, 25 प्रतिलेखन, 3 गुप्ति एवं चार अभिग्रह (द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव की अपेक्षा) 12 भिक्षु प्रतिमाओं (पडिमाओं) का वर्णन दशाश्रुतस्कंध शास्त्र की सातवीं दशा में हुआ है। वहाँ देखा जा सकता है एवं 25 प्रतिलेखना का उल्लेख उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 26 में किया गया है। उपाध्याय महाराज प्रभावक होते हैं। वे 8 प्रभावना से जिन धर्म की प्रभावना करते हैं। आठप्रभावना निम्न प्रकार हैंप्रवचनी- वे जैन एवं जैनेतर शास्त्रों के मर्मज्ञ विद्वान होते हैं। धर्मकथा- धर्मोपदेश करने में कुशल होते हैं। वादी- उपाध्याय जी स्वपक्ष के मण्डन और परमत के खंडन में सिद्धहस्त होते हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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