Book Title: Upadhyay ka Swarup evam Mahima Author(s): Chandmal Karnavat Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 1
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 370 उपाध्याय का स्वरूप एवं महिमा प्रो. चाँदमल कर्णावट उपाध्याय आगमवेत्ता होते हैं तथा चरण एवं करण में भी निष्णात होते हैं। अध्यापन अथवा वाचनी देना उनका प्रमुख कार्य होता है। वे धर्मकथा, शास्त्रार्थ, निमित्तज्ञता, कवित्व आदि से धर्म की प्रभावना करते हैं। वे श्रुत के संरक्षक होते हैं। प्रस्तुत आलेख में उपाध्याय की महिमा पर भी प्रकाश डाला गया है। -सम्पादक नवकार मंत्र या पंच परमेष्ठी मंत्र जैन धर्म का मूल मंत्र है। इस मंत्र में परम इष्ट परम पद स्थित अरिहंत, सिद्ध और परमपद की साधना में निरत आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-साध्वीजी को नमस्कार किया गया है। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-साध्वी ये पंच परमेष्ठी हैं। जैन धर्म गुणपूजक है, व्यक्ति पूजक नहीं। यही कारण है कि इस पंचपरमेष्ठी मंत्र या नवकार मंत्र में किसी अरिहंत, सिद्ध, आचार्यादि का नामोल्लेख नहीं करके तद्तद्पद के योग्य गुणी आत्माओं को ही नमन किया गया है। उपाध्याय पंच परमेष्ठी में चतुर्थ पद के अधिकारी श्रमण हैं जो उपाध्याय के गुणों से अलंकृत और शोभित होते हैं तथा साधना में निरत रहते हुए मोक्ष सिद्धि करते हैं। उपाध्याय कौन?- जो श्रमण के सभी गुणों से युक्त होकर स्वयं संपूर्ण जिनागमों या जैन शास्त्रों के गूढ ज्ञाता होने के साथ अन्य साधु-साध्वी एवं गृहस्थों को पात्रापात्र के विचारपूर्वक यथा योग्य ज्ञान सिखाते एवं अध्ययन कराते हैं। भगवती सूत्र (1.1.1.) में मंगलाचरण वृत्ति में कहा गया है ___ बारसंगो जिणक्रवाओ, सज्झाओ कहिओ बुहेहिं। ___ तं उवदिसंति जम्हा, उवज्झाया तेण वुच्चंति॥ अर्थात् जिन प्रतिपादित द्वादशांग रूप स्वाध्यायसूत्र वाङ्मय ज्ञानियों द्वारा कथित, वर्णित या ग्रथित किया गया है। जो उसका उपदेश करते हैं वे (उपदेश श्रमण) उपाध्याय कहे जाते हैं।' “आगमों की अर्थवाचना आचार्य देते हैं। यहाँ उपाध्याय द्वारा स्वाध्यायोपदेश पर सूत्रवाचना का उल्लेख है। उसका तात्पर्य यह है कि सूत्रों के पाठोच्चारण की शुद्धता, स्पष्टता, विशुद्धता, अपरिवर्त्यता तथा स्थिरता बनाए रखने के हेतु उपाध्याय पारम्परिक एवं भाषावैज्ञानिक आदि दृष्टियों से अंतेवासी श्रमणों को मूलपाठ का सांगोपांग शिक्षण देते हैं।" आगम गाथाओं का उच्चारण कर देना मात्र पाठ या वाचन नहीं है। अनुयोगद्वार सूत्र 8 में पद के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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