Book Title: Upadhyay ka Swarup evam Mahima Author(s): Chandmal Karnavat Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 5
________________ | 374 | जिनवाणी | | 10 जनवरी 2011 || __ आचार्य दोनों समन्वित रूप में मोक्ष की साधना के कारण बनते हैं। पढमं नाणं तओ दया' में भी इसी भाव की अभिव्यक्ति हुई है। चतुर्विधसंघ में तीर्थरूपी श्रावक-श्राविका के रूप में हम भी उपाध्याय से ज्ञान प्राप्तकर आचार्य से आचार ग्रहण कर ज्ञान एवं क्रिया दोनों की साधना करते हुए अपना अभीष्ट मोक्ष प्राप्त कर सकें, यही मंगल भावना। संदर्भ सूची:1. जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग-2, -आचार्यश्री हस्तीमल जी म.सा., जैन इतिहास समिति, आचार्य विनयचंद्र ज्ञान भंडार, लाल भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर, प्रथम संस्करण 1974,सम्पादकीय पृ-66 2. वही, पृष्ठ 67 3. अनुयोगद्वार सूत्र 8, संकलित 4-6. जैन तत्त्वप्रकाश, आचार्य श्री अमोलकऋषि जी महाराज, अमोल जैन ज्ञानालय,धुले, 13वीं आवृत्ति 1998 7. चाँदमल कर्णावट द्वारा लिखित 'जैन विचारधारा में शिक्षा' लेख से संगृहीत, द्रष्टव्य पुस्तकः- 'जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप'- उपाचार्य देवेन्द्र मुनि, तारक गुरुग्रन्थालय, शास्त्री सर्कल, उदयपुर (राज.) 8. आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा., उत्तराध्ययन सूत्र-द्वितीय भाग, अध्ययन 11, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, बापू बाजार, जयपुर (राज.), प्रथम आवृत्ति-1985 'आचार्यश्री हस्तीमल जी म.सा., जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग 2, पृ.52 संपादकीय 10. युवाचार्य श्री मधुकर जी म.सा., 'त्रीणि छेदसूत्राणि' के अतंर्गत व्यवहार सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्रज मधुकर स्मृति भवन पीपलिया बाजार, ब्यावर, द्वि. संस्करण 2006, तीसरा उद्देशक, पृ. 312 11. श्रीमधुकर मुनि महामंत्र नवकार', मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, पीपलिया बाजार, ब्यावर (राज.), पृ.8 12. आवश्यक सूत्र -प्लॉट 35, अहिंसापुरी, फतेहपुर, उदयपुर-313001(राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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