Book Title: Unke Prachin Jain Mandir Author(s): Rakeshdutt Dwivedi Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 4
________________ रूपसे दर्शनीय है । इनमें से कुछ स्तम्भ निम्न भागमें चौपहल (भद्रक) हैं और ऊपरकी ओर वृत्ताकार हो गये हैं और कुछ स्तम्भ निम्न भागसे आठ पहलू (अष्टास्र) हैं और ऊपरकी ओर अलंकृत वृत्ताकारमें बदल गये हैं । अष्टास स्तम्भोंका ऊपरी भाग मूर्तिसहित लघु रथिकाओं, पर्णबन्ध, हंसमाला, ग्रासमुखों और वृत्ताकार पट्टियोंसे सुशोभित है जिनके ऊपर मानवाकृतियोंसे विभूषित स्तम्भशीर्ष छतको रोकनेवाले शिलापट्टोंके आधारका काम करते हैं (चित्र ४) । गूढमण्डपके बाहरी द्वारोंके सिरदलके मध्य ( ललाटबिम्ब) में कमलासनमें बैठी जैन प्रतिमा निर्मित की गयी है जिसके ऊपर पाँच लघुरथिकाओंमें जैन यक्षियोंकी मूर्तियाँ दर्शायी गयी हैं । द्वारोंके पार्श्वभाग पाँच शाखाओं में विभाजित किये गए हैं जिनको पत्रवल्ली, रत्नशाखा, स्तम्भशाखा आदिसे अलंकृत किया है । द्वारकी चौखट ( उदुम्बर) के मध्य में मन्दारक और उसके दोनों ओर कीर्तिमुखोंका प्रतिरूपण पश्चिमी भारतके जैन मन्दिरोंकी अलंकरण पद्धतिका अनुसरण करता है । त्रिमण्डपके द्वारको पार करते ही दर्शक गूढ़मण्डपमें प्रवेश करता है जिसके दो पार्श्वद्वार पूर्व और पश्चिम दिशाकी ओर खुलते हैं । गूढ़मण्डपकी भीतरी छत (वितान) आठ अठपहलू (अष्टास्र) स्तम्भों पर TOT ॐ Man चित्र ४. चौबारा डेरा मं० २, त्रिकमण्डपके स्तम्भोंका अलंकरण आधारित है जिनके ऊपर पत्रवल्लीसे अलंकृत सिरदल है। नाभिच्छन्द प्रकारका क्षिप्त वितान गूढमण्डपको ओर अधिक स्थान और भव्यता प्रदान करता है जिसमें ऊपरकी ओर घटते हुए वृत्ताकार पट्ट संयोजित किये गए हैं जिनमें सबसे ऊपर पद्मशिला या लटकता हुआ लम्बन रहा होगा । वितानके गोलाकार चारों - ३३२ - Jain Education International For Private & Personal Use Only wwww.jainelibrary.orgPage Navigation
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