Book Title: Trishashti Shalaka Purushcharitam Mahakavya
Author(s): Hemchandracharya, Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai

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Page 10
________________ [प्रतावना प्र . - - स्ता - - - व - - - ना मोहमयादनुभवपि नाथ ! मर्यो । नूनं गुणान गणचितुं न तव भमेन ।। कल्पान्तबान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मा-। न्मीयत केन जलधर्ननु रत्नराशिः ॥ १॥ (कल्याणमंदिर स्तोत्र) निर्मल आकाशमां सहस्रकिरणोथी प्रकाशी रहेला सूर्यना पूर्ण प्रकाशन वर्णन करवानी शक्ति धूवडने कदी मळी नथी. कारण के, एनी आंखे प्रकाशने ओळखबानी लायकी के-वी नथी. पूर्ण प्रकाशने ओरखनानी शक्नि जेने मची छे, तेय पूर्ण प्रकाशने वर्णबी शकचा असमर्थ ज रहे छे. कारण के वर्णनना माधननी-शब्दोनी-शक्ति मीमित छे, ज्यारे वर्णन तो अनंतन कर छे अने आ मर्यादा कविने नही रही. आरीने, घूप अने कवि, आ बनेनी पूर्ण प्रकाशन वर्गवयानी अशक्ति होवा छतां वर्णन करवाना अधिकार अंगे बनेनी योग्यता तहन विरुद्ध छे. पूर्ण प्रकाशन वर्णन करवा घुबड अनधिकारी के, त्यारे कविनो अधिकार अबाधित रहे छे. कारण के घूवड प्रकाशनो शत्रु के ज्यारे कवि प्रकाशनी अर्थी छे. ब

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