Book Title: Trishashti Shalaka Purushcharitam Mahakavya
Author(s): Hemchandracharya, Subodhchandra Nanalal Shah
Publisher: Gangabai Jain Charitable Trust Mumbai
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त्रीजा सर्गनो ५९२ मो श्लोक नीचे मुजब छे.
जिघांसौ सेवके चापि निर्विशेषस्य ते ननु ।
मेवा को नाम कुर्वीत न योऽहमिव मूढधीः ॥ ५९२ ॥ अहीं संपादके कुर्वीत पछी न यो शब्दनो अर्थ न समजातां एक 'न' उमेरी तनयोऽहमिव मूढधीः एवो पाठ मूकी छापी दीधुं, पण आम करवाथी मात्रामेळ तूटी गयो तेनो ख्याल तो न कर्यो पण 'तनयो' लखवाथी अर्थ पण बद्लाई गयो तेनो य विचार न कर्यो, अने आना परथी भाषांतर करनारे पण 'तनयो नो अर्थ 'पुत्र' करी 'पुत्रनी जेम कोण सेवा करे !' एवो ज अर्थ छाप्यो. आ संपादनमा आ अने आवी क्षतिओनुं यथाशक्य परिमार्जन करवामां आव्यु छे.
परमनिस्तारक, श्रमणभगवान, वर्धमानस्वामी परनी अनन्य श्रद्धा अने भक्तिथी ग्रन्थकारे आ चरित्र लायुंछ एनां दर्शन तो वाचकने डगले ने पगले थाय के एटले ए दृष्टिए जोता आ ग्रन्थ मात्र जीवनचरित्र न रहेतां स्तुतिपूर्ण जीवनचरित्र बनी जाय के ए वस्तु खास नोंधपात्र छे.
39.
उपसंहार
आ ग्रन्थ- अक्षरश: वाचन करी शुद्धिपत्रक तैयार करवाने कार्य पूज्य आचार्य श्री विजयमृगांकसूरीश्वरजी महाराजना विद्वान् शिष्य मुनिराज श्री हेमभूषणविजयजी महाराजे कर्य के तथा आ अन्धनी