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तीर्थकर पार्श्वनाथ
में कहीं-कहीं थोड़ी एकरूपता भी दिखाई देती है जो कि विषय वस्तु के कारण स्वाभाविक भी है। फिर भी प्रत्येक आलेख कुछ न कुछ नया अवश्य दे जाता है। प्रस्तुत ग्रंथ में कई आलेख ऐसे भी हैं जो कि अत्यन्त महत्वपूर्ण होने के बावजूद, अंतिम समय में आने के कारण, संगोष्ठी में पढ़े नहीं जा सके। इन आलेखों को भी हमने इस ग्रंथ में सम्मिलित किया है। साथ ही कतिपय आलेख ऐसे भी पढ़े गये जो कि बहुचर्चित होने के साथ ही पहले भी प्रकाशित हो चुके हैं। हमने यह भी अनुभव किया कि शोध आलेखों को प्रमाणों के आधार पर ही लिखा जाना चाहिये। अतः ऐसे कुछ आलेखों को हमने यहाँ मुद्रित नहीं किया
है।
कुल मिला कर "तीर्थंकर पार्श्वनाथ" पर यह संगोष्ठी एक उपयोगी ग्रंथ के रूप में सामने आ रही है। यह बहचर्चित भी होगी इसमें हमें कोई संदेह नहीं। ब्र. अतुल जी लगातार हमें याद दिलाते रहे कि ग्रंथ का प्रकाशन होना है। संभवतः इसीलिये यह ग्रंथ आपके हाथों में आ रहा है। जिनकी प्रेरणा एवं आशीर्वाद से यह कार्य संपन्न हुआ, उन महान् संत दिगंबर मुनि उपाध्यायश्री ज्ञानसागर जी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुये, हम हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। विद्वानों के प्रति उपाध्यायश्री की स्नेहधारा अनवरत प्रवाहमान रहे, तथा हमें अनेकों कार्य करने की प्रेरणा देती रहे, इसी आशा के साथ,
संपादक मंडल डॉ. अशोक कुमार जैन, रुड़की डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर डॉ. सुरेशचन्द्र जैन, वाराणसी (संप्रति दिल्ली)