Book Title: Tirthankar Mahavira Part 2
Author(s): Vijayendrasuri
Publisher: Kashinath Sarak Mumbai

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Page 17
________________ सेन ३५८, सुकाली ३५८, सुकृष्णा,सुजात ३५८, सुजाता ३५८, सुदंसण ३५८, सुदर्शन ३५८, सुद्धदंत ३५८, सुधर्मा ३५८, सुनक्षत्र ३५८, सुनक्षत्र ३५८, सुप्रतिष्ट ३५८, सुबाहुकुमार ३५८, सुभद्र ३५६, सुभद्रा ३५६, सुमना ३५६, सुमनभद्र ३५६, सुमरुता ३५६, सुव्रता ३५६, सुवासव ३५६, हरिकेसबल ३५६, हरिचन्दन ३६०, हल्ल ३६० । श्रावक-श्राविका श्रावकधर्म ___अणुव्रत ३६६, गुणव्रत ३६७, शिक्षाबत ३६६, प्रतिमा ३७०, अतिचार ३७४, अणुव्रतों के अतिचार ३७५, गुणवतों के अतिचार ३६२, कर्म-संबंधी १५ अतिचार ३६४, वाणिज्यसम्बन्धी ५ अतिचार ३६५, सामान्य ५ अतिचार ३६६, शिक्षा व्रतों के अतिचार ३६७, संलेखना के ५ अतिचार ४०३, ज्ञान के ८ अतिचार ४०४, दर्शन के ८ अतिचार ४०५, चरित्र के ८ अतिचार ४०६, तप के १२ अतिचार ४०६, अनशन ४१०, उणोदरीतप ४१२, वृत्तिसंक्षेप ४१५, रसपरित्यागतप ४१६, कायक्लेश-तप ४१६, संलीनता तप ४१६, प्रायश्चित ४१७, विनयतप ४१६, वैयावृत्य ४१६, स्वाध्यायतप ४२०, ध्यानतप ४२०, कायोत्सर्ग तप ४२०, वीर्य के ३ अतिचार ४२१, सम्यक्त्व के ५ अतिचार ४२१ । आनन्द ४२२ चैत्य-शब्द पर विचार ४४२, धार्मिक साहित्य (संस्कृत) ४४४, बौद्ध-साहित्य ४४५, पाली ४४५, इतर साहित्य ४४६, कुछ आधुनिक विद्वान ४५३ । कामदेव ४५६ चुलनीपिता ४५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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