Book Title: Tin Krutiya
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ अनुसन्धान-५९ प्रथम कृति ज्ञानपञ्चमी विवाहगर्भित नेमिनाथ स्तवन है । यह अपभ्रंश से प्रभावित मरुगुर्जर भाषा में है। इसमें अपभ्रंश की तरह मरुगुर्जर भाषा में भास और वस्तु छन्द का प्रयोग किया गया है। यह भी उपाध्याय कीतिराज के नाम से ही रचना की गई है अतः आचार्यपद पूर्व की ही यह रचना है । अभय जैन ग्रन्थालय में प्रति संख्या ९९३५ सत्रहवीं शताब्दी लिखित यह प्रति सुरक्षित है। पाच ज्ञान के आलोक एवं उसके महत्त्व में पंच प्रकार की वस्तुओं का उल्लेख करते हुए उनके त्याग का या रक्षण का उल्लेख किया गया है और अन्त में ज्ञान के उद्योत से सिद्धि नगरी का निवासस्थान की याचना की गई है। दूसरी कृति ‘चत्तारि अट्ठ दस' के षड् अर्थ दिए गए हैं। यह प्राकृत भाषा में रचित है । सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र में आगत चत्तारि अट्ठ दस दोय के स्थान पर यह चत्तारि अट्ठ दस के ही भिन्न अर्थों में छ: अर्थ किए हैं। इसमें मात्रिक छन्द, गाथा-विगाथा गाहू का प्रयोग किया गया है । यह कृति आचार्य बनने के पश्चात् की है और इसकी एकमात्र प्रति ९६२५ के स्थान पर अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है । तृतीय कृति शान्तिनाथ स्तुति के नाम से आचार्य बनने के पश्चात् की कृति है। इसमें भोजन सामग्री और मुखशुद्धि के शब्दों का प्रयोग करते हुए भिन्नार्थ किए गए हैं। वैसे यह अन्यार्थ स्तुति के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसकी अवचूरि की प्रति मैंने कोटा खरतरगच्छ ज्ञान भण्डार में देखी थी, किन्तु उसमें कर्ता का नाम नहीं था । इन कृतियों के अतिरिक्त नेमिनाथ महाकाव्य जो कि साधुअवस्था में कीर्तिराज की रचना है, संस्कृत में लिखा गया है और इसका सम्पादन डॉ. सत्यव्रत शास्त्री ने किया है। अन्य कृतियों के नाम हैं - १. जिनस्तवन चौवीसी, २. पञ्चकल्याणक स्तोत्र, ५. नेमिनाथ विनती, ६. पुंजोर विनती, ७. रोहिणी स्तवन प्राप्त है। संवत् १४७३ में जैसलमेर में रचित लक्ष्मण विहार प्रशस्ति प्राप्त है । पाठकों के अध्ययनार्थ कृतियाँ प्रस्तुत हैं :

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