Book Title: Tin Krutiya Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ अनुसन्धान-५९ कपूर लवंग रस, सदा पान फरो हरे / / तंबोल खयरसारं व सोपारी सुथितं क्रियात् // 4 // इति श्री अन्यार्थास्तुतिः / कीर्तिरत्नाचार्यायै / ' - प्राकृत भारती 1. उपरोक्त 3 कृतिओमां अशुद्धता घणी लागे छे. सम्पादकजीए जेवू मोकल्युं तेवं प्रगट करवामां आव्युं छे. आ रचनाओनी हस्तप्रत मळे तो अवश्य सुधारी शकाय. आ 3 उपरान्त अजितनाथ-जपमाला नामे एक संस्कृत रचना पण आपेली. परन्तु ते नितान्त अशुद्ध होवाथी हस्तप्रत वगर सुधारवानुं अशक्य जणातां ते नहि छापवानुं वधु योग्य मान्युं छे. - शी.Page Navigation
1 ... 4 5 6