Book Title: Thavacchaputra Anagar Chaudhaliya Author(s): Mehulprabhsagar Publisher: Mehulprabhsagar View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 17 प्रभु पासे म्है सांभल्यौ रे, धर्म रूच्यो मुझ एह । मात कहै सुत धन्य तूं रे, वलि कृतपुण्य अछेहो रे कुमर कहै वलि मातजी रे, दीजै मुझ आदेश । प्रभु पासै जई आदरूं रे, संयम सुगुण निवेसो रे मात सुणी असुहामणो रे, ए सुत वचन विचार । पुत्र विरहे व्याकुल थई रे, धरणि ढली तिण वारो रे वलि शीतल उपचार थी रे, सावधान थई मात । विलपंती कहे पुत्र ने रे, दीन वयण ईणि भातो रे ढाल - २ (ढाल - जीवन जादा रहो रहो एहनी) इष्ट कांत तु पुत्र अमारै, एकज छै बहु मान्यौ । रयण करंड समान अनुपम, दुर्लभ दरसण जाण मोहनगारा सुण सुण पुत्रपियारा सुण सुण । वारि जाउं सुण सुण प्राण आधारा || || तुम वियोग मुझ थी न खमायै, छिण एक पिण इण वारे । तिण कारण जां लगि में जीवुं, तां लगि रहि सुत सारै मानव भव संबंधी भोगवि, काम भोग सुविलासे । परणीत वय कुल वंस वधावी, व्रत लीजै प्रभु पासै पुत्र कहे नर भव अति चंचल, संध्या वांन इम जाणौ । पहिला अथवा पाछै इक दिन, तजवुं निश्चै जाणौ । माता मोरी सुणौ सुणौ । 1 वारि जाउं सुणौ सुणौ मुज विचार कुण पहिला कुण पाछै जासै, परभव एकुण जाणै । तिण कारण अनुमति मुझ दीजै, व्रत लेवा इण टांगै माता कहे वलि ए कुलवंती, बत्तीसे वरनारी । सदृश रूप लावण्य गुणाकर, भोगव सील सुधा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailass agarsuri Gyanmandir नवम्बर २०१६ 11211 11811 113011 ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ मो. ॥१४॥ मो. ॥१५॥ ||१६|| माता. ॥१७॥ मो.Page Navigation
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