Book Title: Thavacchaputra Anagar Chaudhaliya
Author(s): Mehulprabhsagar
Publisher: Mehulprabhsagar

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org SHRUTSAGAR 16 November-2016 प्रश्नोत्तर सार्धशतक, विचार शतक बीजक आदि ग्रन्थ आपकी आगम शास्त्रों की अजोड़ पकड़ को सिद्ध करते हैं। भूधातु वृत्ति से जहाँ आपकी व्याकरण के तलस्पर्शी ज्ञान की झलक मिलती है, तो तर्कसंग्रह फक्किका, मुक्तावली फक्किका (अप्राप्य) आदि ग्रंथों में आपकी प्रांजल न्यायशैली देखकर विद्वज्जन दंग रह जाते हैं। आपकी रचित अधिकांश रचनाएँ अद्यावधि अप्रकाशित हैं। जिनमें से १२१ लघुकृतियों का संकलन मेरे द्वारा किया जा रहा है। थावच्चापुत्र अणगार चौढालीया (ढाल - धर्म हियै धरौ एहनी ढाल - १ भविजन सांभलौ । आलस विषय निवारो रे, मन करी निर्मलो रे || टेर || द्वारिका नगरी अति भली रे, अलकापुरी अवतार । राज करै तिहां यदुपति रे, कृष्ण नरेसर सारो रे सेठाणी इक तिहां वसै रे, थावच्चा धन नाम । तसु नंदन गुण आगरू रे, थावच्चा पुत्र नामोरे कुलवंती कन्या भली रे, एक लगन बत्तीस । परिणावी तिण परिवर्यौ रे, सुख भोगवै निसदीसो रे तिण अवसर श्री नेमिजीरे, गिरिवर श्री गिरनार । समवसर्या नंदन वने रे, साधु अढार हजारो रे वासुदेव आदेश थी रे, ताडी भैर सुजाण । कौमोदकी नामें तिहां रे, मिलिया सहु नर राणों रे ऋद्धि तणे विस्तारथी रे, हरि वंदे प्रभु पाय । थावच्चा सुत पिण तहां रे, वांद्या श्री जिनरायौ रे वाणि सुणी जिनवर तणी रे, प्रतिबुज्यौ तिण वार । घर आवी माता भणी रे, पभणे एम कुमारो रे Acharya Shri Kailass agarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ॥१॥ 11211 ॥३॥ 11811 11411 ॥६॥ 11611

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7