Book Title: Thambhan Tirthmal Stavan Author(s): Trailokyamandanvijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ डिसेम्बर २०१० अनुसंधान ५१-सूचिमां पुण्यसागरसूरिना नामे नोंधाई छे. पण वास्तवमां तेओना शिष्य मुक्तिसागरनी छे. कृतिना अन्ते अपायेलो समय आम छे : 'संवत सतर ओगण पचलोतरा वरसे, काती सुद छठे मलाया'. आना परथी त्रण वर्ष तारवी शकाय : वि.सं. १७०५, १७४९ अने १९०५. आम आ रचनानुं खरेखर कयुं वर्ष ते नक्की करवं मुश्केल छे. पण जो ‘सतर' शब्दने वधारानो गणीओ, अने खरेखर वधारानो ज गणवो जोईओ ओम नीचेना कारणसर लागे छे, तो कृतिनी रचना वि.सं. १९०५ मां थई होवानुं नक्की थाय छे. अने कर्ता १९मी सदीमां विद्यमान पुण्यसागरसूरिना शिष्य होवानो निश्चय थाय छे. हवे कया कारणसर 'सतर' शब्दने वधारानो गण्यो ते वात : खंभातनां जिनालयोने ज वर्णवती श्रीमतिसागरनी चैत्यपरिपाटी-रचना सं. १७०१ करतां प्रस्तुति कृतिनुं वर्णन घणुं भिन्न छे. तेथी कृति अनाथी नजीकना समयनी न होय. वळी, कृतिमा उल्लेखायेल प्रजापतिवाडाना महाभद्रस्वामीनुं जिनालय १९मी सदीना रेवाचंद पानाचंदना कागळ (अनु.-८, पृष्ठ ७०, सं. - उपा भुवनचन्द्रजी) अने सं. १९४७ना जयतिहुअणस्तोत्रना ग्रन्थनी प्रस्तावनामां नोंधायेलुं छे. ते पहेलांनी के ते पछीनी कृतिओमां आ जिनालयनो उल्लेख नथी. जे सूचवे छे के आ कृति सं. १९०० आसपास ज रचाई होय. श्रीमोहनभाई पण आने सं. १९०५नी ज गणावे छे. कृतिमां खंभातना कुल २३ विस्तारोनां ८४ जिनालयोनी नोंध छे. जिनालय तेमां स्थपायेला मूळनायकना नामथी ओळखाय अवो सामान्य रिवाज छे. तदनुसार ज कृतिमां जिनालयोनां नाम अपायां छे. लिप्यन्तरमा ढाळ- ६, ७ अने ८नी ओक ओक पंक्ति नथी मळती. बनी शके के मूळप्रतमां ज कदाच आ पंक्तिओ न होय. ओ ज रीते बधे ठेकाणे जिनालयोनां नाम अपायां छे, पण ढाळ-३मां मानकुंवरबाईनी पोळमां त्रण जिनालयोनो उल्लेखमात्र छे, नाम नथी. तेथी सम्भव छे के आ जिनालयोनां नाम वर्णवती अक कडी कदाच छूटी गई होय. खंभातनां जिनालयोने वर्णवती प्राचीन कृतिओमांथी अत्यारे उपलब्धPage Navigation
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