Book Title: Terapanth ka Rajasthani Gadya Sahtiya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
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तेरापंथ का राजस्थानी गद्य साहित्य
नयचक्र री जोड-न्याय अपने आप में एक कठिन विषय है। हर एक व्यक्ति इसमें सुगमता से प्रवेश नहीं पा सकता । श्रीमज्जाचार्य ने देवचन्द्रसूरि द्वारा रचित 'नयचक' का राजस्थानी में पद्यमय अनुवाद किया । इसमें १४४ दोहे २० सौर १८ छंदों में ७१८ गाथाएं हैं। साथ-साथ आपने इस पर १२५ वार्तिकाएं लिखी हैं। ये सब गद्य में हैं । इनका ग्रन्थमान ८७८ पद्य परिमाण है।' इतने कठिन विषय को इस प्रकार राजस्थानी में प्रस्तुत करना अपने आप में महत्वपूर्ण है।
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भिक्खु दृष्टान्त - तेरापंथ का प्रादुर्भाव हुए सौ वर्ष बीत गये थे। अब तक आचार्य भिक्षु के संस्मरण या घटनाओं का संकलन नहीं हुआ था । श्रुतानुश्रुत की परम्परा से वे एक दूसरे तक पहुँच रहे थे । श्रीमज्जयाचार्य युवाचार्य बन गये थे । उन्होंने सोचा - स्वामीजी की घटनाओं का संकलन किया जाए। उस समय मुनि हेमराजजी, जिन्होंने स्वामीजी को अत्यन्त निकटता से देखा था, विद्यमान थे। जयाचार्य ने उनसे निवेदन किया। उन्होंने संस्मरण सुनाये । जयाचार्य ने उन्हें संकलित किया और 'भिक्खु दृष्टान्त' ग्रन्थ तैयार हो गया। इसमें ३१२ संस्मरण संकलित हैं। कृति के अन्त में चार दोहे हैं। इस ग्रन्थ की संपूति संवत् १९०३ कार्तिक शुक्ला १३ रविवार के दिन नाथद्वारा (मेवाड़) में हुई ।
इस ग्रन्थ का प्रकाशन वि सं० २०१५ तेरापंथ द्विशताब्दी के अवसर पर हुआ था। जनता ने इसका अपूर्व स्वागत किया ।
संस्मरण संकलन की विधा को प्रारम्भ कर जयाचार्य ने अपनी सूझ-बूझ और इतिहास-रक्षण की प्रवृत्ति को उजागर किया है। इस ग्रन्थ की विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० विजयेन्द्र स्नातक ने पुस्तक को पढ़कर लिखा है
"स्वामीजी (आचार्य भिक्षु) के जीवन से सम्बन्ध होने के कारण इन प्रसंगों में जीवन निर्माण की अतुल विधि का संचय होना तो स्वाभाविक ही था, किन्तु शैली की सरसता और रोचकता के कारण ये इतने सुपाठ्य और हृदयग्राही बन गये हैं कि इनमें जीवन कथा का सा आनन्द आता है ।
" इस प्रकार के विचारोत्तेजक एवं गम्भीर आदर्शों से ओत-प्रोत संग्रह का हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन हो जाए तो लाभप्रद होगा। मैंने इतने सरस अपने प्रसंगों में इतनी सरस शैली में लिखी जीवन निर्माण में सहायक दूसरी पुस्तक नहीं देखी। न तो इसमें दार्शनिक उलझन है और न बनावटी भाषा या अभिव्यक्ति का झंझट । इसमें सीधी-सादी सरल भाषा में गहन गुत्थियों को सुलझाया गया है ।"
डा० रघुवीरणरण, एम० ए०, पी-एच० डी०, डी० लिट्० ने लिखा है - "इस ग्रन्थ का ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व भी है। भाषा की दृष्टि से तत्कालीन राजस्थानी का नमूना प्रस्तुत है । अतः भाषा विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए (यह पुस्तक) विशेष अध्ययन का विषय बन सकती है ।"
इस प्रकार भिक्खु दृष्टान्त संस्मरणात्मक राजस्थानी गद्य साहित्य का उत्कृष्ट ग्रन्थ माना जा सकता है। इसके कुछ प्रसंग इस प्रकार है
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(क) 'भीखणजी स्वामी देसूरी जातां घांणेरावनां महाजन मिल्या पूछ्यो—थांरो नाम कांइ ? स्वामीजी बोल्या - म्हारो नाम भीखन जद ते बोल्या - भीखण तेरापंथी ते तुम्हें ? जद स्वामीजी कह्यो- हां, उवेहीज । जद ते क्रोधकर बोल्या - थांरो मूंहड़ो दीठा नरक जाय। तिवारे स्वामीजी कह्यो - थांरो मूंहड़ो दीठा ? जद त्यां को - म्हांरो मूंहड़ो दीठा देवलोक नै मोक्ष जाय जद स्वामीजी कह्यो -म्हें तो यूँ न कहां- मूंहडो दीठां स्वर्ग नरक जाय पिण थांरी कहिणी रे लेखे थांरो मूंहडो तो म्हें दीठो सो मोक्ष ने देवलोक तो म्हें जास्यां । अने म्हांरो मूंहडो थें दीठो सो थांरी कहिणी रे लेख थांरे पानें नरक ईज पडी ।'
- दृष्टान्त १५.
१. जयाचार्य की कृतियां एक परिचय, पृ० ३३
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